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योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य- १३२
चौपड़ में चार रंग की गोटियाँ होती हैं- नीली, काली, लाल और पीली । इन्हें आत्मा की लेश्या - अध्यवसाय का प्रतीक समझना चाहिए । चौरासी खानों में चौरासी लाख उत्पत्ति-स्थानों में- नीली गोटी, काली गोटी से अपनी जोड़ी न तोड़ कर फिरती रहती है । लाल और पीली गोटी कभी-कभी अपनी जोड़ी तोड़ कर अपने स्थान पर, अपने घर में आ जाती है । जब तक कृष्ण और नील लेश्या के अध्यवसाय आत्मा के साथ हैं तब तक आत्मा चौरासी में भ्रमण करती ही रहती है । जब शुभ 'लेश्या के अध्यवसाय वाली आत्मा अशुभ लेश्या का साथ छोड़ देती है तो आत्मा स्वभाव रूप घर में आ जाती है और फिर वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो जाती है ॥४॥
विवेचन - छह लेश्या हैं :- कृष्ण, नील, कापोत, तेजस, पद्म और शुक्ल । मन के द्वारा होने वाले ग्रात्मा के परिणाम को लेश्या कहा जाता है । ये छह लेश्याएँ मन की सहचारी होती हैं । तेरहवें गुणस्थानक में भाव मन नहीं होने से वहाँ भाव लेश्या भी नहीं होती । लेश्या के परिणामों का आधार मनोवर्गणा का सम्बन्ध है । मनोवर्गणा पाँच रंगों की होती है । जब कृष्ण वर्ण की वर्गरणा का हलन चलन होता है तब जीव के मन के द्वारा होने वाले अध्यवसायों को कृष्णलेश्या के परिणाम के रूप में जाना जाता है । क्रमशः रंगों के अनुसार लेश्या जानें । कृष्ण, कापोत तथा नील लेश्या अशुभ परिणाम वाली होती हैं । तेजोलेश्या, पद्मलेश्या तथा शुक्ल लेश्या शुभ परिणाम वाली होती हैं । कृष्ण लेश्या परिणामी जीव हिंसक, महा-आरम्भी, क्रूर, शत्रु और क्रोध आदि दोषयुक्त होते हैं । नील लेश्या में भी ऐसे परिणाम होते हैं परन्तु प्रथम लेश्या की अपेक्षा नील लेश्या में तनिक मन्द परिणाम होते हैं । तेजोलेश्या से दया (करुणा) के परिणाम के भाव होते हैं । लाल पद्म के रंग की लेश्या वाले तथा पीली लेश्या वाले जीव सम्यक्त्व रत्न के द्वारा मोक्ष में आ सकते हैं और वे जोड़ी का नाश कर सकते हैं । कृष्ण, नील, कापोत एवं तेजोलेश्या वाले जीव हृदय में पूर्णतः विवेक धारण नहीं कर सकते । कापोत एवं तेजोलेश्या वाले मोक्ष घर की ओर प्रयाण करने के अधिकारी होते हैं परन्तु कृष्ण एवं नील लेश्या वाले जीव तो जब तक उस परिणाम में हों तब तक स्वस्थान की ओर प्रयाण नहीं कर सकते ।
चौपड़ के खेल में जब तक 'पौ' नहीं आती तब तक बाजी जीतने के आसार नहीं होते अर्थात् गोटियाँ अपने गन्तव्य की ओर नहीं जा