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________________ . श्री आनन्दघन पदावली-१२६ राग दोस मोह के पासे, आप बणाये हितधर । जैसा दाव' परे पासे का, सारि चलावे खिलकर ।। प्रानी० ।। २ ।। पाँच तले है दुपा भाई, छका तले है एका । सब मिलि होत बराबर लेखा, इह विवेक गिणवेका ।। प्रानी० ।। ३ ।। चौरासी मावै फिरे नीलो, स्याह न तोर जोरी । लाल जरद फिरि प्रांवे घर में, कबहुक जोरी बिछोरी ।। । प्रानी० ।। ४ ।। भीर विवेक के पाउ न पावत, तब लगि काची बाजी। आनन्दघन प्रभु पाव दिखावत, तो जीते जीव गाजो !! प्रानो० ।। ५ ।। अर्थ-श्रीमद् आनन्दघनजी योगिराज ने चौपड़ खेल के माध्यम से जीवन-चौपड़े की जो बाजी लग रही है उसे किस प्रकार जीता जा सकता है, समझाया है। प्रात्मा ने चार गति युक्त चौपड़ खेल के लिए सजा रखी है। जो इसे विवेकपूर्वक खेलता है वह चौपड़ में विजय प्राप्त कर लेता है, अन्यथा चौरासी के चक्कर में फंसा रहता है। इसी भाव को इस पद में बताया गया है। ___साखी कुटिल चाल चलने वाली कुबुद्धि कुबड़ी कुब्जा के समान है और सुबुद्धि सही चाल चलने वाली राधिका के समान है। ये दोनों परस्पर चौपड़ खेलती हैं। कई बार कुबुद्धि कुब्जा के जीत के लक्षण प्रकट हो जाते हैं परन्तु अन्त में सुबुद्धि राधिका की विजय होती है। कुबुद्धि कुब्जा पराजित हो जाती है। _ विवेचन-चतुर्गति रूप चौपड़ है-देव गति, मनुष्य गति, तिथंच गति और नरक गति। इस चतुर्गति रूप चौपड़ पर कुबुद्धि के द्वारा प्रेरित समस्त जीव अनन्त काल से परिभ्रमण करते हैं। चतुर्गति रूप चौपड़ पर एक स्थान पर स्थिर होकर नहीं ठहरते और कर्म के योग से जन्म, जरा, एवं मृत्यु के दुःख को धारण करते हैं। वे तनिक भी सहज शान्ति का अनुभव नहीं कर सकते। कुबुद्धि से चौरासी लाख जीवायोनि में
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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