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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-१२४ सुमति कहती है कि मेरे स्वामी रात-दिन ममता की शय्या पर क्रीडा करते हैं, फिर भी वे उनींदे ही रहते हैं अर्थात् रात-दिन माया में लिप्त रहने के कारण वे सदा अतृप्त ही बने रहते हैं। कुछ प्रतियों में 'औरनिदे दिन रात' पाठ है जिसका अर्थ हैममता की शय्या में वे अत्यन्त लुब्ध हैं, दिन-रात वे उसी मोह-निद्रा में पड़े रहते हैं। इन बातों में कुछ लेना-देना नहीं है, ये समस्त बातें व्यर्थ हैं। प्रातःकाल होता है और चला जाता है अर्थात् समय यों ही व्यतीत हो रहा है ।। ३ ॥ __पाठान्तर में अर्थ है कि आत्म-स्वामी ममता रूपी शय्या पर पड़े रहते हैं और तू रात-दिन उनकी निन्दा करती रहती है, जिससे कोई आत्म-स्वामी की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। ऐसी बात में कुछ लेना-देना नहीं है और इस प्रकार को प्रवृत्ति में प्राप्त समय निष्फल जाता है ।।३।। ___ श्री ज्ञानसारजी ने इस तीसरे पद्यांश का रहस्यार्थ किया है, जिसका सारांश है कि-विभाव रूपी रात्रि के व्यतीत होने पर स्वभाव रूपी सूर्य के उदय होने से ही चेतन-स्वामी आयेंगे। हे सखि श्रद्धे ! तेरा यह कहना कि छबीले लाल नरम हैं, अभी आयेंगे, परन्तु इस बात में कोई सार नहीं है, कुछ लेने-देने जैसी बात नहीं है ।। ३ ।।, समति की इतनी अधीरता की बातें सुनकर श्रद्धा उसे आश्वस्त करते हुए कहती है कि हे स्वामिनी! तनिक मेरी बात सुनो। आप इतना खेद मत करो। आनन्दधाम आत्माराम उद्यम करने से अवश्य आयेंगे। आप इस प्रकार शोकमग्न बैठी रहोगी तो कुछ नहीं होगा। आप ममता की अनुपस्थिति में चेतनजी के पास जानो और उन्हें उस प्रोर की असारता बतायो। यदि प्रमाद त्याग कर इस प्रकार सदा पुरुषार्थ करती रहोगी तो शनैः शनैः चेतन निजस्वरूप में अवश्य प्रा जायेंगे। उद्यम करने से ही आपको सफलता मिलेगी। इस प्रकार स्वरूपानन्द रूपी मेद अर्थात् मोटापा की वृद्धि होगी और सुमति से प्रेम बढ़ता जायेगा ॥ ४ ॥ विवेचन–श्रद्धा ने स्वामिनी को कहा कि आत्म-स्वामी का तुरन्त मिलाप न हो, इसके लिए इतना अधिक खेद नहीं करना चाहिए।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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