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________________ श्री आनन्दघन पदावली-१११ विवेचन ---भादौं की रात्रि बादलों की घटाओं के कारण अत्यन्त काली होती है। प्रियतम-वियोगिनी स्त्री को प्रियतम के बिना भादौं की रात्रि कटार के समान लगती है। एक वैरिन जैसी भादौं की रात्रि रूपी कटार मेरा कलेजा काटने का कार्य करती है। मेरे प्रात्म-पति के बिना मेरे हृदय के टुकड़े हुए जा रहे हैं। इस प्रकार सुमति कहती है कि भादौं की रात्रि मेरी ऐसी दशा करती है। सुमति कहती है कि एक रात्रि में प्रियतम के ध्यान में मैं ऐसी खो गई कि उनके नाम की स्मृति ही भूल बैठी। हे चातक ! 'पिउ-पिउ' की ध्वनि से मुझे तू क्या चेतावनी दे रहा है ? मेरे घट में तो पिउ ही बस रहा था, मुझे तो उनका ही ध्यान था, उनका ही विचार मेरे मन में था। केवल मुह पर उनका नाम नहीं था ।। २ ।। विवेचन-ध्यान में कई बार ऐसी समाधि लग जाती है और दीर्घ अभ्यास से इसी तरह ध्येय और ध्यान की एकता सिद्ध होती है। फिर ध्याता, ध्यान और ध्येय तीनों एकरूप हो जाते हैं। उस रात्रि में सुमति चेतन स्वामी के ध्यान में ऐसी लीन हो गई कि ध्याता, ध्येय और ध्यान की एकाग्रता हो गई और उसे ध्यान ही न रहा कि वह और उसके स्वामी भिन्न हैं। उस समय, चिंत्त रूपी चातक ने मुझे सचेत कियां जिससे मैं सविकल्प दशा में आ गई और प्रिय शब्द का जाप करने लगी। अर्थ---ऐसे आड़े समय में, दुःख के समय में किसी ने पालाप लगा कर गायन किया। उससे जब मेरा ध्यान टूटा तो ज्ञात हुआ कि चतुर पपीहा मुझे ध्यान-लीन देखकर 'पिउ-पिउ' की तान लगा रहा है ।। ३ ।। विवेचन-सुमति अनुभव मित्र को कहती है कि एक बार मैं अपने प्रियतम का स्मरण करती हुई अकेली बैठी थी, मैं उनके प्रेम में तन्मय हो गई थी, उनके वियोग के कारण अन्तर में विलाप कर रही थी, उस समय पपीहे ने बेवक्त तान छेड़ी, तो मैं उनसे मिलने के लिए अत्यन्त आतुर हो गई। सुमति के साथ तान मिलाने वाला मन के अतिरिक्त अन्य कौन हो सकता है ? मन एवं बुद्धि जब एक ही दिशा में कार्यरत होते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है। सुमति के कार्य में मन बारहवें गुरणस्थानक तक सहायता करता है। भाव-मन की सहायता के बिना घातीकर्म का क्षय नहीं होता। मन की सहायता से केवलज्ञान और
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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