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धर्मयुद्ध क्यों?
भगवान् का संघ, भगवान् के सिद्धान्त की रक्षा के लिये लड़ना पड़े तो लड़े, परन्तु दुनियां की किसी भी चीज के लिये वह नहीं लड़ता। लडते समय भी सामने वाले के हित की चिन्ता तो उसके हृदय में बैठी ही होती है क्योंकि यह तो धर्मयुद्ध है। ये सिद्धान्त तो पूरे जगत का कल्याण करने वाले हैं। इनकी हानि हो तो उसे रोकने के लिये कषाय ।' भी करने पड़ते है।
____ जगत् का भला करने वाले सिद्धान्त जिन्दे रहने चाहिये । जगत् के . सभी जीवों का भला सोचना यह सही, परन्तु सर्व कल्याणकारी शासन के सामने कोई शिर ऊंचा करे तो उसके सामने योग्य कदम लेने ही पड़ते हैं। - शक्ति होने पर भी खोटी बातों का विरोध किये बिना हमको चेन नहीं पड़ती, चेन पड़े तो हमारे में साधुपना रहे नहीं । तुमको तो सम्हा-. लने जैसा वहुत है इसलिये तुम्हारा दिमाग ठण्डा रहे । हमारे तो सम्हालने • जैसा एक यह धर्मशासन ही है। यह भी यदि न सम्हाले तो हमारे पास - दसरा रहे क्या ? समय आने पर बिरोध करने के लिये ही हम विरोध नहीं करते, विरोध करने की हमारी आदत नहीं है परन्तु कम भाग्य हैं कि बात-बात में विरोध करना पड़ता है ऐसा काल में हम जन्मे है।
बहुत से ऐसी सलाह देने आते है कि विरोध से क्या होने वाला हैं ? मुझ उनको कहना है कि, भले कुछ न हो, परन्तु योग्य जीवों को तो इसके द्वारा सच्ची समज की प्राप्ति होती ही है और हमको तो निर्जरा ही है। विरोध करने के समय विरोध किया था ऐसा आत्मसन्तोष पाकर शान्ति से मर सकेंगे। शक्ति होने पर भी, अधर्म का विरोध न करे तो, मरते समय समाधि भी नहीं मिलती।
(व्याख्यानवाचस्पतिप०आ० श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वर जी महाराजा)