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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . न होना व्यतिरेक है । शब्द का अर्थ के साथ ऐसा अन्वय-व्यतिरेक सिद्ध नहीं होता है । शब्द के होने पर भी अर्थ उपलब्ध नहीं होता है और शब्द के अभाव में भी अर्थ पाया ही जाता है । उक्त प्रकार से विचार करने पर शाब्दज्ञान प्रमाणान्तर सिद्ध होता है।
उपमानप्रमाणविचार आगम की तरह उपमान भी एक पृथक् प्रमाण है । उपमान का लक्षण इस प्रकार है
दृश्यमानाद् यदन्यत्र विज्ञानमुपजायते ।
सादृश्योपाधितस्तरुपमानमिति स्मृतम् ॥ अर्थात् दृश्यमान गवय से सादृश्य के कारण गौ का जो ज्ञान होता है उसे उपमान कहते हैं।
जिस व्यक्ति ने गाय को देखा है और गवय को नहीं देखा है और 'गौरिव गवयः''गवय गौ की तरह होता है' इस वाक्य को कभी नहीं सुना है, ऐसे व्यक्ति के वन में जाने पर उसे प्रथम बार गवय का दर्शन होता है । गवय के देखने से उसे परोक्ष गौ में अनेन सदृशो गौः' 'गौ इसके सदृश है' ऐसा जो सादृश्यज्ञान उत्पन्न होता है उस ज्ञान का नाम है उपमान । उपमान का विषय सादृश्यविशिष्ट परोक्ष गौ है अथवा गौविशिष्ट सादृश्य है । इस प्रकार का ज्ञान अनधिगत अर्थ को जानने के कारण प्रमाण है । परोक्ष अर्थ को विषय करने के कारण इसको प्रत्यक्ष नहीं कह सकते हैं ।
और किसी अविनाभावी हेतु के न होने से इसको अनुमान भी नहीं माना जा सकता है । अतः उपमान एक पृथक् प्रमाण है ।
__ अर्थापत्तिप्रमाणविचार आगम और उपमान की तरह अर्थापत्ति भी प्रमाणान्तर है । अर्थापत्ति का लक्षण इस प्रकार है
प्रमाणषट्कविज्ञातो यत्रार्थोऽनन्यथा भवन् ।
अदृष्टं कल्पयेदन्यं सार्थापत्तिरुदाहृता ॥ अर्थात् प्रत्यक्षादि छह प्रमाणों से विज्ञात जो अर्थ जिस अन्य अर्थ के बिना नहीं हो सकता है उस अदृष्ट अर्थ की कल्पना करने को अर्थापत्ति कहते