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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
का ज्ञान होने से और परलोक आदि का निषेध करने से अनुमान का सद्भाव सिद्ध होता है । इस कथन का विशेषार्थ इस प्रकार है
चार्वाक कहता है कि प्रत्यक्ष प्रमाण है, अविसंवादक होने से तथा अनुमान अप्रमाण है, विसंवादक होने से । यहाँ स्वभावहेतुजन्य अनुमान से प्रत्यक्ष को प्रमाण और अनुमान को अप्रमाण बतलाया गया है । इससे स्पष्ट है कि प्रमाण और अप्रमाण की व्यवस्था करने के लिए चार्वाक को अनुमान प्रमाण मानना आवश्यक है । अन्य प्राणी में बुद्धि है, इसका ज्ञान बुद्धि के कार्य व्यापार, व्यवहार आदि को देख कर किया जाता है । यह कार्यहेतुजन्य अनुमान है । चार्वाक अन्य पुरुष में बुद्धि का ज्ञान इसी अनुमान से करता है । चार्वाक परलोक आदि का निषेध करता है । यह निषेध अनुपलब्धिहेतुजन्य अनुमान के द्वारा किया जाता है । बौद्धन्याय में हेतु के तीन भेद हैं-स्वभाव हेतु, कार्य हेतु और अनुपलब्धि हेतु ।
उपरिलिखित श्लोक में यह बतलाया गया है कि चार्वाक को तीनों हेतुजन्य अनुमान को मानना पड़ता है । इसके बिना उसका काम नहीं चलता है । इस प्रकार से बौद्धों ने चार्वाक के प्रति अनुमान प्रमाण की सिद्धि की है जो जैनों को भी अभीष्ट है । इत्यादि प्रकार से विचार करने पर चार्वाक द्वारा अभिमत प्रत्यक्षैकप्रमाणवाद निरस्त हो जाता है । प्रथम सूत्र में यह बतलाया था कि प्रमाण के दो भेद हैं । अब उन्हीं दो भेदों को यहाँ बतलाया जा रहा है।
प्रमाण के भेद
प्रत्यक्षेतरभेदात् ॥२॥ प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से प्रमाण के दो भेद हैं । बौद्ध भी प्रमाण के दो भेद मानते हैं । उनके अनुसार प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो प्रमाण हैं
और दोनों प्रमाणों का विषय पृथक् पृथक् है । प्रत्यक्ष का विषय है स्वलक्षण और अनुमान का विषय है सामान्यलक्षण । अब यहाँ इसी बात पर विचार करना है कि बौद्धों की मान्यता कहाँ तक ठीक है।
प्रमेय के द्वित्व से प्रमाणद्वित्व का विचार पूर्वपक्ष
बौद्धों की मान्यता है कि दो प्रमेय होने के कारण प्रमाण. दो हैं