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________________ ➖➖ ६ विविधता और मौलिक चिन्तन के कारण अपने आप में पूर्ण एवं स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हैं । संस्कृत भाषा में निबद्ध ये दोनों विशाल टीकाग्रन्थ न्यायविषयक होने से अत्यन्त दुरूह हैं, जिससे अनेक विद्वानों के लिए भी इनके हार्द को समझने में कठिनाई होती है। अतः आचार्य प्रभाचन्द्र की न्यायविद्या विषयक कृति प्रमेयकमलमार्तण्ड को सरल और सुबोध शैली में परिशीलन के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए श्री उदयचन्द्र जैन प्रशंसा के पात्र हैं । ईसा की ग्यारह शताब्दी के विद्वान् आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है, किन्तु पूर्वोक्त दोनों न्यायग्रन्थों के कारण ही इनकी विशेष ख्याति है। इन दोनों ग्रन्थों में आचार्य प्रभाचन्द्र ने सम्पूर्ण भारतीय दर्शनों की प्रायः सभी शाखाओं की प्रमुख मान्यताओं को उनके मूल स्रोतों के आधार पर गहन अध्ययनपूर्वक पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुत किया है । तदनन्तर प्रबल प्रमाणों के आधार पर पूर्वपक्ष का खण्डन करते हुए जैनदर्शन के पक्ष को अकाट्य युक्तियों और प्रमाणों द्वारा प्रस्तुत किया है। अतः प्रमेयकमलमार्तण्ड के अध्ययन से सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय दर्शनों को समझा जा सकता है। आचार्य प्रभाचन्द्र की न्याय तथा दर्शन विषयक रचनाओं से जैनदर्शन तथा जैनन्याय को जो गौरव प्राप्त हुआ है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। परीक्षामुखसूत्र पर रचित इस कृति का 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' नाम सार्थक है, क्योंकि जिस प्रकार सूर्य कमलों को विकसित करता है, उसी प्रकार यह ग्रन्थ प्रमेयरूपी कमलों को विकसित ( प्रकाशित ) करने के लिए मार्तण्ड (सूर्य) के समान है। प्रमेयकमलमार्तण्ड की तरह न्यायकुमुदचन्द्र भी जैन न्याय तथा जैनदर्शन विषयक एक महत्त्वपूर्ण कृति है । आचार्य अकलंकदेव ने लघीयस्त्रय नामक एक प्रकरण ग्रन्थ की रचना ७८ कारिकाओं में की थी और इन कारिकाओं पर विवृति ( टीका ) भी लिखी थी । इसमें छोटेछोटे तीन प्रकरणों-प्रमाणप्रवेश, नयप्रवेश और प्रवचनप्रवेश का संग्रह है । और न्यायकुमुदचन्द्र एक स्वतन्त्र ग्रन्थ न होकर लघीयस्त्रय और उसकी विवृति का विशद व्याख्यान है । न्यायकुमुदचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्ड से बड़ा है और डॉ० पं० महेन्द्रकुमार जी द्वारा सम्पादित होकर माणिकचन्द्र दि० जैन
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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