SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशित हो चुका है। प्रमेयकमलमार्तण्ड का तो बहुत पहले हिन्दी में अनुवाद हो चुका है, किन्तु वर्तमान में न्यायकुमुदचन्द्र का भी हिन्दी में अनुवाद आवश्यक है। यदि प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन की तरह इसका भी परिशीलन लिखा जाय तो भी इस ग्रन्थ के हार्द को समझने में पाठकों को बहुत ही सुविधा होगी । प्रसन्नता की बात है कि जैन-बौद्धदर्शन के साथ ही विविध भारतीय दर्शनों के अधिकारी विद्वान् श्री उदयचन्द्र जैन सर्वदर्शनाचार्य ने परिश्रमपूर्वक प्रस्तुत प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन को राष्ट्रभाषा हिन्दी में लिखकर एक स्तुत्य कार्य किया है। मैं इनकी योग्यता तथा विद्वत्ता से सुपरिचित हूँ । आशा है विद्वान् लेखक की यह कृति सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चौरासी - मथुरा में चातुर्मास के समय मेरे समक्ष कई विद्वानों की उपस्थिति में सात दिन तक प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन की वाचना हुई और सभी विद्वान् लेखक की लेखन शैली तथा विद्वत्ता से बहुत ही प्रभावित हुए। वाचना के मध्य हुए अनेक विचारविमर्शों को भी विद्वान् लेखक ने इसमें समाहित कर लिया है। श्री उदयचन्द्र जैन ने इससे पूर्व आचार्य समन्तभद्र की आप्तमीमांसा : पर आचार्य अकलंकदेव की अष्टशती और आचार्य विद्यानन्द की अष्टसहस्त्री के आलोक में आप्तमीमांसा - तत्त्वदीपिका एवं आचार्य समन्तभद्र रचित स्वयम्भूस्तोत्र पर तत्त्वप्रदीपिका नामक व्याख्यायें लिखी हैं, जो इनके दर्शन विषयक गम्भीर ज्ञान को प्रकट करती हैं । ये दोनों ग्रन्थ श्री गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान वाराणसी से प्रकाशित हुए हैं। अन्त में हम उदयचन्द्र जैन के मांगलिक अभ्युदय की कामना करते हुए उन्हें अपना शुभाशीर्वाद देते हैं कि वे भविष्य में भी इसी प्रकार साहित्य सेवा करते रहें, जिससे समाज को उनके ज्ञान का लाभ मिलता रहे । . दिल्ली ऋषभ जयन्ती २२ मार्च १९९८ उपाध्याय ज्ञानसागर
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy