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________________ प्रकाशकीय सन् १९९१ में गया (बिहार) में चातुर्मास के समय परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज की प्रेरणा से प्राचीन तथा नवीन साहित्य के प्रकाशन के लिए प्राच्य श्रमण भारती की स्थापना हुई थी। तब से लेकर अब तक इसके द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। इसी क्रम में इस वर्ष प्रो० उदयचन्द्र जैन सर्वदर्शनाचार्य द्वारा लिखित प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन का प्रकाशन किया जा रहा है। ___वर्तमान में प्रमेयकमलमार्तण्ड के दो संस्करण उपलब्ध हैं। प्रथम संस्करण श्रीमान् डॉ० पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित तथा सन् १९४१ में निर्णयसागर प्रेस बम्बई से प्रकाशित है। इसमें मूल ग्रन्थ के ६९४ पृष्ठ हैं तथा इसकी महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना ७५ पृष्ठों में है। और द्वितीय संस्करण विदुषी आर्यिका जिनमती माता जी द्वारा कृत हिन्दी अनुवाद सहित . सन १९७७ में वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला हस्तिनापुर से तीन भागों में प्रकाशित हुआ है। ये दोनों संस्करण विशालकाय होने के साथ गम्भीर भी हैं। अतः इस समय हिन्दी में एक ऐसे लघु संस्करण की आवश्यकता थी जो सरल और सुबोध शैली में लिखा गया हो। और प्रो० उदयचन्द्र जी ने प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन लिखकर इस आवश्यकता की पर्ति की है। प्रमेयकमलमार्तण्ड का यह परिशीलन विद्यार्थियों तथा साधारण पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। विद्वान् भी इससे लाभ उठा सकते हैं। यह पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज की प्रेरणा से लिखा गया है। अतः प्राच्य श्रमण भारती से इसका प्रकाशन करने में हमें प्रसन्नता हो रही है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले दिल्ली निवासी श्रीमान् विनयकुमार अशोककुमार जैन के प्रति हम हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। प्राच्य श्रमण भारती के सभी सदस्यों के प्रति भी हम धन्यवाद ज्ञापित करते हैं, जिनका इसके प्रकाशन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सहयोग प्राप्त हुआ है। वर्तमान में साहित्य प्रकाशन के अतिरिक्त प्राच्य श्रमण भारती के माध्यम तथा पूज्य उपाध्यायश्री की प्रेरणा से विद्वत्सम्मान, संगोष्ठी आयोजन आदि महत्त्वपूर्ण कार्य भी हो रहे हैं। मुजफ्फरनगर मंत्री ३१ मार्च १९९८ प्राच्य श्रमण भारती
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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