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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
का लक्षण बतलाया है । वह लक्षण उनका स्वरुचि विरचित नहीं है किन्तु अकलंक आदि पूर्वाचायों द्वारी सिद्ध है । पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित प्रमाण
और प्रमाणाभास का लक्षण विस्तृत होने के कारण उसे परीक्षामुख में मन्दबुद्धि वाले शिष्यों की व्युत्पत्ति के लिए संक्षेप में लिखा गया है । .
प्रारंभिक श्लोक में आगत लघीयसः' शब्द लघु शब्द से बना है । लघु का अर्थ है छोटा । परीक्षामुख की रचना उन लोगों के लिए की गई है जो बुद्धि में छोटे हैं अर्थात् मन्दबुद्धि हैं । छोटे तीन प्रकार के होते है-आयु में छोटे, शरीर के परिमाण ( ऊँचाई ) में छोटे और बुद्धि में छोटे । यहाँ बद्धि में जो छोटे हैं उन्हीं का ग्रहण किया गया है, अन्य का नहीं । प्रारंभिक श्लोक में परीक्षामुख का अभिधेय, प्रयोजन और सम्बन्ध भी । बतला दिया गया है । परीक्षामुख का अभिधेय है प्रमाण और प्रमाणाभास का लक्षण । प्रयोजन दो प्रकार का होता है-साक्षात् और परम्परासे । यहाँ साक्षात प्रयोजन है प्रमाण और प्रमाणाभास के लक्षण का ज्ञान और परम्परा से प्रयोजन है अभिलषित अर्थ की प्राप्ति । क्योंकि प्रमाण और प्रमाणाभास का ज्ञान हो जाने के बाद ही अभिलषित अर्थ की प्राप्ति होती है । परीक्षामुख और उसके अभिधेय में प्रतिपाद्य और प्रतिपादक रूप सम्बन्ध है । परीक्षामुख प्रतिपादक है और उसका अभिधेय प्रतिपाद्य है । ___यहाँ एक जिज्ञासा हो सकती है कि परीक्षामुख के प्रारंभ में इष्ट देवता को नमस्काररूप मंगलाचरण क्यों नहीं किया गया है । इसका उत्तर यह है कि नमस्कार तीन प्रकार का होता है-वाचनिक, कायिक और मानसिक । अत: वाचनिक नमस्कार नहीं करने पर भी यह संभव है कि लेखक द्वारा कायिक तथा मानसिक नमस्कार किया गया हो । फिर भी जिनका आग्रह ऐसा है कि वाचनिक नमस्कार का होना आवश्यक है, उनके लिए प्रमाण' शब्द के द्वारा वाचनिक नमस्कार सिद्ध किया गया है । वह इस प्रकार हैप्रमाण पद में तीन शब्द हैं-प्र+मा+आण । 'मा' नाम लक्ष्मी का है । वह दो प्रकार की होती है-अनन्तज्ञानादिरूप अन्तरंग लक्ष्मी और समवसरणादिरूप बहिरंग लक्ष्मी । आण' का अर्थ है शब्द या वचन । 'प्र' का अर्थ है प्रकृष्ट ( सर्वोत्कृष्ट ) अत: जिनके सर्वोत्कृष्ट अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी और दिव्यध्वनिरूप वचन पाये जाते हैं ऐसे अरहन्त भगवान् प्रमाण कहलाते हैं । इस प्रकार अरहन्त भगवान् के असाधारण गुणों को बतला देना ही इष्ट देवता का वाचनिक नमस्काररूप मंगलाचरण सिद्ध हो जाता है । .