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प्रस्तावना
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(३) तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण ( सर्वार्थसिद्धिव्याख्या) (४) शाकटायनन्यास ( शाकटायनव्याकरणव्याख्या) (५) शब्दाम्भोजभास्कर (जैनेन्द्रव्याकरणव्याख्या) (६) प्रवचनसारसरोज भास्कर ( प्रवचनसारव्याख्या ) और (७) गद्यकथाकोश । इनके अतिरिक्त कुछ अन्य ग्रन्थ भी प्रभाचन्द्र द्वारा रचित हैं ।
क्या प्रभाचन्द्र माणिक्यनन्दि के शिष्य थे ?
श्रीमान् डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ने 'जैनन्याय की भूमिका' नामक पुस्तक में लिखा है
" प्रभाचन्द्र ने माणिक्यनन्दि से न्यायशास्त्र पढ़ा था और प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में प्रभाचन्द्र ने माणिक्यनन्दि को अपना न्यायविद्यागुरु बतलाया है ।"
यहाँ प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में निम्नलिखित दो श्लोक ध्यान देने योग्य हैं
गुरुः श्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसज्जनः । नन्दताद् दुरितैकान्तरजाजैनमतार्णवः ॥ ३ ॥ श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेकगुणालयः । प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयाद् रत्ननन्दिपदे रतः ॥ ४ ॥ यहाँ इन श्लोकों का तात्पर्य यही है कि प्रभाचन्द्र पद्मनन्दि सैद्धान्त के शिष्य थे तथा माणिक्यनन्दि को भी उन्होंने गुरु के रूप में स्मरण किया है । यहाँ प्रश्न यह है कि क्या माणिक्यनन्दि प्रभाचन्द्र के साक्षात् गुरु थे ? इस विषय में श्रीमान् पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य ने कुछ भी नहीं लिखा • है । यह तो सम्भव नहीं है कि श्री पं० महेन्द्रकुमारजी ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में लिखित उक्त श्लोकों पर ध्यान न दिया हो ।
वैसे उक्त प्रश्न का एक समाधान यह हो सकता है कि प्रभाचन्द्र के दो गुरु रहे हों - पद्मनन्दि सैद्धान्त तथा माणिक्यनन्दि । पद्मनन्दि सैद्धान्त उनके दीक्षागुरु हों और माणिक्यनन्दि विद्यागुरु । दूसरा समाधान यह भी सम्भव है कि माणिक्यनन्दि प्रभाचन्द्र के परम्परागुरु हों और परम्परागुरु के रूप में ही प्रभाचन्द्र ने माणिक्यनन्दि का स्मरण किया हो । परन्तु आचार्य प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में अपने को 'माणिक्यनन्दि के