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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
कृतियों की रचना की । प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुखसूत्र पर बारह हजार श्लोक. प्रमाण प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक विशालकाय भाष्य लिखा है । यह जैनन्याय तथा जैनदर्शन का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसके लिए लघु अनन्तवीर्य ने उदार - चन्द्रिका ( चाँदनी ) की उपमा दी है और अपनी रचना प्रमेयरत्नमाला को प्रमेयकमलमार्तण्ड के सामने खद्योत ( जुगनू ) के समान बतलाया है' । प्रभाचन्द्र का ज्ञान कितना विशाल एवं गम्भीर था इसका पता इस बात से चलता है कि उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड में जैनागम तथा जैनदर्शन के अनेक ग्रन्थों से प्रचुरमात्रा में उद्धरण तो दिये ही हैं, इसके साथ ही भारतीय दर्शन के शीर्षस्थ ग्रन्थ वेद, उपनिषद्, पुराण, महाभारत तथा भगवद्गीता आदि सैकड़ों ग्रन्थों से भी अनेक उद्धरण दिये हैं । इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्यस्मृति, प्रसिद्ध वैयाकरण भर्तृहरि के वाक्यपदीय, भामह के काव्यालंकार, माघ कवि के शिशुपालवध - महाकाव्य, महाकवि बाणभट्ट की कादम्बरी और बौद्धाचार्य अश्वघोष के सौन्दरनन्द महाकाव्य से भी अनेक उद्धरण दिये हैं ।
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बौद्धाचार्य प्रज्ञाकर गुप्त ने अपने प्रमाणवार्तिकालंकार में भाविकारणवाद और भूतकारणवाद का समर्थन किया है । प्रमेयकमलमार्तण्ड में प्रज्ञाकार गुप्त के उक्त मत का युक्तिपूर्वक निराकरण किया गया है । प्रभाचन्द्र व्याकरण - शास्त्र के भी विशिष्ट ज्ञाता थे । उनके द्वारा जैनेन्द्रव्याकरण पर लिखित शब्दाम्भोजभास्कर से ज्ञात होता है कि उन्हें पातञ्जल महाभाष्य का तलस्पर्शी ज्ञान था । इस प्रकार हमें प्रभाचन्द्र के तलस्पर्शी सूक्ष्म दार्शनिक अध्ययन के साथ ही अन्य अनेक विषयों के अगाध वैदुष्य का बोध होता है । वास्तव में प्रभाचन्द्र का वैदुष्य विशाल, व्यापक एवं गम्भीर था ।
प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ
आचार्य प्रभाचन्द्र की अधिकांश रचनायें व्याख्यात्मक हैं और कुछ स्वतन्त्र ग्रन्थ भी हैं, जो इस प्रकार हैं- ( १ ) प्रमेयकमलमार्तण्ड ( परीक्षामुखसूत्रव्याख्या ) (२) न्यायकुमुदचन्द्र ( लघीस्त्रयव्याख्या )
१. प्रभेन्दुवचनोदारचन्द्रिका प्रसरे सति ।
मादृशाः क्व नु गष्यन्ते ज्योतिरिङ्गणसन्निभाः ॥ - - प्रमेयरत्नमाला