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________________ प्रस्तावना २७ (७) वेदापौरुषेयत्वविचार, (८) नैयायिकाभिमत सामान्यस्वरूपविचार, (९) ब्राह्मणत्वजातिनिरास, (१०) क्षणभंगवाद, (११) वैशेषिकाभिमत 'आत्मद्रव्यविचार और (१२) जय-पराजय व्यवस्था । प्रभाचन्द्र का कार्यस्थल ऐसी प्रबल सम्भावना है कि आचार्य प्रभाचन्द्र दक्षिण प्रदेश में आचार्य पद्मनन्दि सैद्धान्तिक से शिक्षा-दीक्षा लेकर धारा नगरी में चले आये थे और यहीं उन्होंने अपने ग्रन्थों की रचना की । प्रभाचन्द्र धारा नरेश भोज के समकालीन विद्वान् थे । प्रमेयकमलमार्तण्ड में उल्लिखित " श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति । " इस अन्तिम प्रशस्ति से यह स्पष्ट है कि प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक ग्रन्थ भोजदेव के राज्य में धारा नगरी में रचा गया था । भोजदेव के बाद उनके उत्तराधिकारी जयसिंहदेव के राज्य में भी प्रभाचन्द्र ने कुछ ग्रन्थों की रचना की थी।' इससे यह सिद्ध होता है कि आचार्य प्रभाचन्द्र का कार्यस्थल धारानगरी रहा है । प्रभाचन्द्र का समय श्रीमान् पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने न्यायकुमुदचन्द्र प्रथम भाग की प्रस्तावना में प्रभाचन्द्र का समय ईस्वी ९५० से १०२० तक निर्धारित किया है । श्रीमान् डॉ० पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रस्तावना ( पृष्ठ ६७ ) में इनका समय ईस्वी ९८० से १०६५ तक निर्धारित किया है । श्रीमान् डॉ॰ दरबारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य ने अपनी पुस्तक 'जैनन्याय की भूमिका' में प्रभाचन्द्र का समय १०४३ ईस्वी लिखा है । इन उल्लेखों से इतना तो स्पष्ट है कि प्रभाचन्द्र का समय विक्रम संवत् की ११वीं शताब्दी रहा है । राजा भोज का भी यही समय है । अगाध वैदुष्य आचार्य प्रभाचन्द्र विशिष्ट प्रतिभाशाली थे । इसीलिए उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र जैसी महत्त्वपूर्ण और प्रमेयबहुल
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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