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________________ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . लिखी है वह एक प्रकार से भाष्य है और उसे भाष्य कहने में किसी कोकोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । भाष्य का लक्षण इस प्रकार है सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यैः सूत्रानुसारिभिः । स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः ॥ अर्थात् जिसमें सूत्रों का अनुसरण करने वाले वाक्यों के द्वारा सूत्रों के अर्थ का वर्णन किया जाता है और जिसमें सूत्रों में आगत पदों के साथ ही भाष्यकार के द्वारा निर्मित पदों का भी विवेचन किया जाता है उसे भाष्य के जानकार भाष्य कहते हैं । भाष्य का यह लक्षण प्रमेयकमलमार्तण्ड में पूर्णरूप से घटित होता है । अत: इसे भाष्य कहना सर्वथा युक्तिसंगत है । यद्यपि प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड को कहीं भी भाष्य नहीं कहा है, फिर भी परीक्षामुख सूत्रों पर लिखी गई विशालकाय टीका एवं सूत्रों के प्रत्येक पद की विशद व्याख्या को देखकर उसे भाष्य कहना सर्वथा उचित प्रमेयकमलमार्तण्ड का अर्थ. जिस प्रकार सूर्योदय होने पर कमलों का विकास हो जाता है, उसी प्रकार प्रमेयरूपी कमलों को विकसित ( प्रकाशित ) करने के लिए आचार्य प्रभाचन्द्र की यह कृति मार्तण्ड ( सूर्य ) के समान है । इसलिए इसका प्रमेयकमलमार्तण्ड यह नाम सार्थक है । इस कृति का दूसरा नाम परीक्षामुखालंकार भी है, क्योंकि परीक्षामुख सूत्रों पर प्रभाचन्द्र की यह विस्तृत एवं विशद व्याख्या परीक्षामुख को अलंकृत करने वाली है । इसीलिए प्रभाचन्द्र ने प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में आगत पुष्पिका वाक्य में-'इति श्री प्रभाचन्द्रविरचिते प्रमेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखलंकारे......' ऐसा लिखकर दोनों नामों का उल्लेख किया है । चर्चित विषय प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड में अनेक विषयों पर विशद विवेचन प्रस्तुत किया है । उनमें से निम्नलिखित विषय विशेषरूप से पठनीय हैं (१) भूतचैतन्यवाद, (२) सर्वज्ञत्वविचार, (३) ईश्वस्कर्तृत्वविचार, (४) मोक्षस्वरूपविचार, (५) केवलिभुक्तिविचार, (६) स्त्रीमुक्तिविचार,
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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