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________________ प्रस्तावना ___ २५ में माणिक्यनन्दि की पूर्वावधि ८०० ईस्वी तथा उत्तरावधि ईसा की १० वीं शताब्दी निर्धारित की है । इसके बाद उन्होंने लिखा है कि अधिक सम्भावना यही है कि ये आचार्य विद्यानन्दि के समकालीन हों । इसलिए इनका समय ईसा की ९ वीं शताब्दी होना चाहिए । श्रीमान् डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया न्यायचार्य ने 'जैनन्याय की भूमिका' नामक पुस्तक में माणिक्यनन्दि का समय १०२८ ईस्वी सिद्ध किया है। भाष्यकार आचार्य प्रभाचन्द्र __ आचार्य प्रभाचन्द्र मूलसंघान्तर्गत नन्दिगण की आचार्य परम्परा में दक्षिण में हुए थे । इन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रशस्ति में पद्मनन्दि सैद्धान्त को अपना गुरु बतलाया है । ये जैनन्याय और दर्शन के उच्चकोटि के विद्वान् होने के साथ ही अन्य समस्त भारतीय दर्शनों तथा व्याकरणशास्त्र के भी अच्छे विद्वान् थे । आचार्य प्रभाचन्द्र के द्वारा लिखित प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकमदचन्द्र-ये दो विशालकाय व्याख्याग्रन्थ उच्चकोटि के होने के साथ ही अनुपम एवं अतुलनीय भी हैं । ये दोनों ग्रन्थ जैनन्याय तथा दर्शन से सम्बन्धित विषयों पर व्यापक प्रकाश डालते हैं । इनमें पूर्वपक्ष के रूप में अन्य भारतीय दर्शनों का अच्छा विवेचन प्रस्तुत किया गया है। .. आचार्य प्रभाचन्द्र ने आचार्य माणिक्यनन्दि के आद्य जैनन्याय विषयक परीक्षामुखसूत्र पर जो विशालकाय एवं विशद व्याख्या लिखी है उसका नाम है-प्रमेयकमलमार्तण्ड । इसमें प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुख के प्रायः प्रत्येक सूत्र और उसमें प्रयुक्त पदों का विस्तृत एवं विशद व्याख्यान किया है । इसके साथ ही विविध तर्कपूर्ण चर्चाओं द्वारा अनेक नवीन विषयों और तथ्यों पर भी अच्छा प्रकाश डाला है । इसी प्रकार प्रभाचन्द्र ने अकलंकदेव के लघीयत्रय पर न्यायकुमुदचन्द्र नामक विस्तृत एवं विशद व्याख्या लिखी है, जिसमें लघीयस्त्रय की ७८ कारिकाओं के हार्द को विस्तार से तर्कपूर्ण शैली में उद्घाटित किया है । भाष्यकार आचार्य प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुख के सूत्रों पर जो विस्तृत व्याख्या
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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