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________________ • २४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन परोक्ष प्रमाण का विवेचन है । चतुर्थ परिच्छेद में प्रमाण के विषय का विवेचन तथा पञ्चम परिच्छेद में प्रमाण के फल का विवेचन किया गया है और अन्तिम षष्ठ परिच्छेद में प्रमाणाभास, प्रत्यक्षाभास, अनुमानाभास आदि तदाभासों का विवेचन पाया जाता है । परीक्षामुख की संस्कृत टीकाएँ (१) आचार्य प्रभाचन्द्र ( सन् ११०० ईस्वी ) ने परीक्षामुख पर प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक बृहत्काय व्याख्या लिखी है । . . ... (२) आचार्य लघु अनन्तवीर्य ने परीक्षामुख पर प्रमेयरत्नमाला नामक मध्यम परिमाण की विशद एवं सरल व्याख्या लिखी है । इनका समय विक्रम संवत् की बारहवीं शताब्दी है । (३) विक्रम संवत् की अठारहवीं शती के तार्किक विद्वान् श्री चारुकीर्ति भट्टारक ने परीक्षामुख पर प्रमेयरत्नालंकार नामक व्याख्या लिखी है। (४) विक्रम संवत् की अठारहवीं शताब्दी के विद्वान् श्री अजितसेन ने परीक्षामुख पर न्यायमणिदीपिका नामक व्याख्या लिखी है ।। (५) श्री विजयचन्द्र नामक किसी विद्वान् ने परीक्षामुख पर अर्थप्रकाशिका नामक व्याख्या लिखी है। . (६) श्री शान्तिवर्णी ने परीक्षामुख के प्रथमसूत्र पर प्रमेयकण्ठिका नामक व्याख्या लिखी है । इनके अतिरिक्त परीक्षामुख पर लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों द्वारा हिन्दी में भी कुछ व्याख्याएँ लिखी गई हैं । इनमें श्री पं० जयचन्द जी छावड़ा की वचनिका तथा श्री पं० घनश्यामदास जी न्यायतीर्थ की हिन्दी व्याख्या प्रमुख हैं। उपर्युक्त संस्कृत तथा हिन्दी टीकाओं से परीक्षामुखसूत्र का महत्त्व प्रकट होता है । माणिक्यनन्दि का समय प्रमेयरत्नमाला के प्रारम्भ में आचार्य अनन्तवीर्य के उल्लेख से यह तो निश्चित ही है कि माणिक्यनन्दि अकलंकदेव के बाद हुए हैं श्रीमान् डॉ० पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य ने प्रमेयकमलमार्तण्ड की प्रस्तावना ( पृष्ठ ५ )
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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