________________
प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक बृहत्काय भाष्य लिखा है । इसलिए सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए यहाँ दोनों आचार्यों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है ।
२२
सूत्रकार आचार्य माणिक्यनन्दि
आचार्य माणिक्यनन्दि नन्दि संघ के प्रमुख आचार्य थे । जैनन्यायशास्त्र में आचार्य माणिक्यनन्दि का परीक्षामुखसूत्र आद्य सूत्रग्रन्थ है 1 उन्होंने जैनन्याय के प्रतिष्ठापक आचार्य अकलंकदेव के वचनरूपी समुद्र का मंथन करके न्यायविद्यारूपी अमृत को निकाला था और न्यायशास्त्र में मन्दबुद्धि वाले लोगों के प्रवेश के लिए परीक्षामुखसूत्र की रचना की थी । इस विषय में आचार्य लघु अनन्तवीर्य ने प्रमेयरत्नमाला के प्रारम्भ में लिखा
अकलंकवचोऽम्भोधेरुदधे येन धीमता ।
न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने ॥
अर्थात् जिस बुद्धिमान् ने अकलंकदेव के वचनरूपी समुद्र से न्यायविद्यारूपी अमृत को निकाला उन माणिक्यनन्दि आचार्य के लिये हमारा नमस्कार हो ।
परीक्षामुखसूत्र पर अकलंकदेव के ग्रन्थों का पूर्ण प्रभाव होने के साथ ही इस पर बौद्धाचार्य दिग्नाग के न्यायप्रवेश तथा धर्मकीर्ति के न्यायबिन्दु का भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । बौद्धदर्शन में हेतुमुख, न्यायमुख जैसे मुखान्त ग्रन्थ थे । संभवत: इन्हीं ग्रन्थों की सरणि पर इस सूत्रग्रन्थ का नामकरण परीक्षामुख किया गया है । जैनदर्शन में जो स्थान तत्त्वार्थसूत्र का है, जैनन्याय में परीक्षामुखसूत्र का भी वही स्थान है । आचार्य माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुखसूत्र में जैनन्याय को गागर में सागर की तरह भर दिया है । उनकी एकमात्र रचना परीक्षामुखसूत्र है और इसी रचना के कारण वे जैनन्याय जगत् में अमर हो गये हैं । न्यायदीपिका में उनका भगवान् के रूप में उल्लेख किया गया है । इससे उनके असाधारण व्यक्तित्व का आभास मिलता है । परीक्षामुखसूत्रों में लौकायतिक ( चार्वाक ), बौद्ध, सांख्य, यौग ( नैयायिक - वैशेषिक ), प्राभाकर,
१. तथा चाह भगवान् माणिक्यनन्दिभट्टारकः ।
- न्यायदीपिका पृ० १२०