________________
प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .. कुन्दकुन्द ने बोधप्रामृत ( गाथा ३७ ) में केवली के कवलाहार का निषेध किया है । तथा सूत्रप्राभृत ( गाथा २३ से ३६ ) में स्त्रीमुक्ति का निराकरण किया है । ईसा की नवमी शताब्दी में शाकटायन नामक प्रसिद्ध वैयाकरण हुए हैं । वे यापनीय संघ के आचार्य थे और नन रहते थे । यापनीय संघ का बाह्य आचार बहुत कुछ दिगम्बरों से मिलता-जुलता था । किन्तु वे श्वेताम्बर आगमों को आदर की दृष्टि से देखते थे । तथा यापनीय संघ के अनुयायी दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों की कुछ बातों को स्वीकार करते थे । आचार्य शाकटायन ने केवलिभुक्ति तथा स्त्रीमुक्ति के समर्थन के लिए केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति नामक दो प्रकरण ग्रन्थ बनाये
थे । इनमें दिगम्बरों की मान्यता का विस्तार से खण्डन किया गया है । ___आचार्य प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र में केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति का जो विस्तृत पूर्वपक्ष लिखा है वह शाकटायन के केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति प्रकरणों से ही लिया गया है । तथा उत्तरपक्ष में शाकटायन के द्वारा उक्त दोनों प्रकरणों में प्रदत्त,युक्तियों का दार्शनिक शैली में प्रबल तर्कों तथा प्रमाणों के आधार पर विस्तार से निराकरण किया गया है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि शाकटायन के सामने दिगम्बर आचार्यों के उक्त दोनों सिद्धान्तों का समर्थक विशाल साहित्य रहा है, जिसके आधार पर उन्होंने दिगम्बरों की उक्त मान्यता का निराकरण करने के लिए केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति नामक दो प्रकरण ग्रन्थ बनाये । परन्तु वर्तमान में हमारे सामने आचार्य प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ ही उक्त दोनों दिगम्बर मान्यताओं का समर्थन करने के लिए उपलब्ध हैं।
प्रमेयकमलमार्तण्ड का प्रतिपाद्य विषय आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड के अन्तर्गत परीक्षामुखसूत्र में प्रतिपादित विषयों के साथ ही अनेक नये विषयों का भी विस्तृत विवेचन किया है ।
__ प्रथम परिच्छेद-प्रमाणसामान्यलक्षण, कारकसाकल्यवाद, सन्निकर्षवाद, इन्द्रियवृत्तिविचार, ज्ञातृव्यापारविचार, प्रमाण में हिताहितप्राप्तिपरिहारविचार, बौद्धाभिमत निर्विकल्पक प्रत्यक्ष का खण्डन, शब्दाद्वैतविचार, संशयस्वरूपसिद्धि, विपर्ययज्ञान में अख्याति आदि का विचार,