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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
ज्ञान है । यह तो परम्परागत अर्थ हुआ । किन्तु केशोण्डुक एक चीज होना चाहिए, दो नहीं । यह अन्वेषणीय है । मैं स्वयं इसके बारे में संदिग्ध रहा. और हूँ । आपका प्रश्न उठाना ठीक है ।"
श्रीमान् कोठियाजी ने न्यायदीपिका की प्रस्तावना ( पृष्ठ ३० ) में भी इस विषय में एक विशेष बात लिखी है, जो इस प्रकार है
"अर्थ के रहने पर भी विपरीत ज्ञान देखा जाता है और अर्थाभाव में भी केशोण्डकादिज्ञान हो जाता है ।"
अब यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिन विद्वानों ने 'केशोण्डुक' या 'उण्डुक' का अर्थ मच्छर किया है वह उन्होंने अपने मन से ही किया है, ऐसा प्रतीत होता है । क्योंकि इसका उन्होंने कोई आधार ( सन्दर्भ ) नहीं दिया है । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि संस्कृत के शब्दकोशों में केशोण्डुक' अथवा 'उण्डुक' शब्द नहीं मिलता है । इस बात की पुष्टि प्रमेयकमलमार्तण्ड के विद्वान् टिप्पणकार के टिप्पण से भी होती है । उन्होंने केशोण्डुक शब्द के नीचे टिप्पण में लिखा है
___ 'कोषेषूडकशब्द एव श्रूयते' । ____ अर्थात् कोष ग्रन्थों में उडुक शब्द ही सुना जाता है । उनका तात्पर्य यह है कि उन्हें कोष ग्रन्थों में उण्डुक शब्द नहीं मिला । वर्तमान में भी कोष ग्रन्थों में न तो उण्डुक शब्द मिलता है और न उडुक शब्द । अतः यह कहना कठिन है कि उण्डुक शब्द का निश्चित अर्थ क्या है ? केवल इतना कहा जा सकता है कि उण्डुक कोई वस्तु या जन्तु है, जैसे कि केश एक वस्तु है । ऐसी स्थिति में यह प्रश्न बना ही रहता है कि उण्डुक शब्द का अर्थ मच्छर करने का आधार क्या है ? . .
संभवतः सूत्रकार आचार्य माणिक्यनन्दि को भी उण्डुक शब्द का अर्थ मच्छर अभीष्ट नहीं है । यदि उन्हें मच्छर शब्द अभीष्ट होता तो वे केशोण्डुक के स्थान में केशमशक लिख देते । क्योंकि संस्कृत में मच्छर के लिए मशक शब्द पाया जाता है । यहाँ यह भी स्मरणीय है कि आचार्य अकलंकदेव ने आत्ममीमांसा की कारिका ८३ की अष्टशती में 'केशमशकादिज्ञानवत्' शब्द का प्रयोग किया है। इसी प्रकार धर्मभूषणयति ने भी न्यायदीपिका में केशमशकादिज्ञानवत्' लिखा है ।