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. . परिशिष्ट-१ : कुछ विचारणीय बिन्दु १. केशोण्डुकज्ञान
प्रमेयकमलमार्तण्ड के द्वितीय परिच्छेद के सूत्र संख्या ७ में केशोण्डुकज्ञान शब्द आया है, जिसका अर्थ कुछ विद्वानों ने केशों में उण्डुक ( मच्छर ) का ज्ञान किया है । इनमें स्व० पं० हीरालाल जी सिद्धान्तशास्त्री का नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय है । उन्होंने प्रमेयरत्नमाला की हिन्दी टीका ( पृष्ठ ७६ ) में लिखा है___"किसी व्यक्ति के मस्तक पर मच्छरों का समूह उड़ रहा था । उसे देखकर किसी को भ्रम हो गया कि केशों का गुच्छा उड़ रहा है । अथवा इसे यों भी कह सकते हैं कि किसी के सिर के केश उड़ रहे थे, उन्हें देखकर किसी को मच्छरों के झुण्ड उड़ने का ज्ञान हो गया । इस प्रकार के ज्ञान में केशों के होते हुए केशों का ज्ञान तो नहीं हुआ, उल्टा मच्छरों का ज्ञान हुआ । अथवा मच्छरों के रहते हुए मच्छरों का ज्ञान तो नहीं हुआ, प्रत्युत केशों का ज्ञान हो गया ।" . - स्व० पूज्या आर्यिका जिनमती माताजी ने प्रमेयकमलमार्तण्ड के भाषानुवादमें केशोण्डुक शब्द का अर्थ उड़ने वाला मच्छर विशेष किया है । उनका कथन इस प्रकार है
"मोतियाबिन्द आदि नेत्र के रोगी को नेत्र के सामने कुछ मच्छर जैसा उड़ रहा है, ऐसा बार-बार भाव होता है, वह मच्छर भौंरा जैसा, झिंगुर जैसा; जिसपर कुछ रोम खड़े हों जैसा दिखाई देने लगता है । वास्तव में वह दिखना निराधार-बिना पदार्थ के ही होता है ।"
-प्रमेयकमलमार्तण्ड, द्वितीय भाग पृष्ठ ७ .. आदरणीय डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया ने मेरे पत्र के उत्तर में केशोण्डुकज्ञान का परम्परागत अर्थ इस प्रकार लिखा है- केशोण्डुकज्ञान का परम्परा से यही अर्थ माना जाता है कि केशों में उण्डुक का ज्ञान होना केशोण्डुकज्ञान है । नाली में बहते हुए केशों को केश माना गया है और उनमें चमकीले कीड़ों का बोध होना केशोण्डुक