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परिशिष्ट - १ : कुछ विचारणीय बिन्दु
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यहाँ यह भी विचारणीय है कि केशोण्डुक एक पद है या केश और उण्डुक ये दो पृथक्-पृथक् पद हैं। आर्यिका जिनमती माताजी ने केशोण्डुक को एक ही पद माना है । प्रमेयकमलमार्तण्ड के देखने से भी यही प्रतीत होता है कि केशोण्डुक एक पद है । आचार्य प्रभाचन्द ने प्रमेयकमलमार्तण्ड के सूत्र (२/७ ) की व्याख्या में लिखा है
कामलाद्युपहतचक्षुषो हि न केशोण्डुकज्ञानेऽर्थः कारणत्वेन व्याप्रियते । तत्र हि केशोण्डुकस्य व्यापारः, नयनपक्ष्मादेर्वा, तत्केशानां वा, कामलादेर्वा गत्यन्तराभावात् ? न तावदाद्यविकल्पः, न खलु तज्ज्ञानं hatushasa सत्येव भवति भ्रमाभावप्रसङ्गात् । नयनपक्ष्मादेस्तत्कारणत्वे तस्यैव प्रतिभासप्रसङ्गात्, गगनतलाबलम्बितया पुरःस्थतया केशोण्डुकाकारतया च प्रतिभासो न स्यात् ।
अर्थात् कामला ( पीलिया) आदि रोगों से दूषितचक्षु वाले पुरुष को होने वाले केशोण्डुकज्ञान में अर्थ कारणरूप से व्यापार नहीं करता है । क्योंकि उसमें केशोण्डुक का व्यापार होता है, अथवा नेत्र की पलकों का, अथवा उसके केशोंका, अथवा कामलादिक का ? इनके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है । इनमें प्रथम विकल्प तो बनता नहीं है, क्योंकि निश्चय से केशोण्डुकज्ञान केशोण्डुकरूप अर्थ के होने पर नहीं होता है । यदि केशोण्डुकज्ञान केशोण्डुकरूप अर्थ के होने पर होता तो वह भ्रमज्ञान न होकर सत्यज्ञान हो जाता ।
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केशोण्डुक ज्ञान का आधार क्या है तथा उसका आकार क्या है ? इस विषय में प्रमेयकमलमार्तण्ड में दो शब्द मिलते हैं
गगनतलावलम्बितया केशोण्डुकाकारतया च ।
अर्थात् केशोण्डुकज्ञान का आधार है गगनतल और आकार है केशोण्डुकाकार । इसका मतलब यही है कि केशोण्डुक एक पद है और उसका वाच्य अर्थ कोई एक चीज है। केशोण्डुकज्ञान का आधार गगनतल होने से यह भी ज्ञात होता है कि इसका आधार न तो सिर है और न नाली है ।
अब यहाँ इस बात पर विचार करना है कि केशोण्डुकज्ञान अर्थ के अभाव में होता है या नहीं । आचार्य प्रभाचन्द्र ने तो स्पष्ट लिखा है कि केशोण्डुकज्ञान अर्थ के अभाव में होता है । और आर्यिका निमती