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________________ २३४ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन तत्त्वसंरक्षण भी होता है । तत्त्वसंरक्षण का मतलब यह है कि न्याय के बल से सम्पूर्ण दोषों का निराकरण करके तत्त्व की रक्षा करना । इसका ऐसा मतलब नहीं है कि दोषों के उद्भावन करने वाले का किसी भी प्रकार मुख बन्द कर देना । यदि प्रतिपक्षी के मुख को बन्द कर देने से ही इष्ट तत्त्व की सिद्धि होती है तो लाठी, चपेटा आदि उपायों के द्वारा भी प्रतिपक्षी का मुख बन्द करके तत्त्वसंरक्षण करना चाहिए । इस कथन का तात्पर्य यह है कि छल, जाति और निग्रहस्थान ये सब असत् उपाय होने के कारण. स्वपक्ष की सिद्धि करने में तथा परपक्ष के निराकरण करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं । यही कारण है कि इनके द्वारा जय और पराजय की व्यवस्था नहीं बन सकती है । यहाँ मुख्य बात यह है कि निर्दोष साधनों द्वारा स्वपक्ष की सिद्धि होने पर ही वादी की जय होती है और प्रतिवादी की पराजय होती है । बौद्धदार्शनिक धर्मकीर्ति ने वादन्याय में छल, जाति और निग्रहस्थान के आधार से होने वाली जय-पराजय की व्यवस्था का खण्डन करते हुए वादी के लिए असाधनांगवचन और प्रतिवादी के लिए अदोषोद्भावन ये दो ही निग्रहस्थान बतलाये हैं । जैसा कि वादन्याय में कहा गया है असाधनांगवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः निग्रहस्थानमन्यत्तु न युक्तमिति नेष्यते ॥ उक्त दो निग्रहस्थानों के अतिरिक्त अन्य कोई भी निग्रहस्थान युक्तिसंगत न होने के कारण बौद्धों के लिए इष्ट नहीं है । जो साधन का अंग नहीं है उसको कहना अथवा जो साधन का अंग है उसे नहीं कहना असाधनांगवचन है । इसी प्रकार साधन में जो दोष है उसका उद्भावन न करना अथवा साधन में जो दोष नहीं है उसका उद्भावन करना अदोषोद्भावन है । वादी का कर्तव्य है कि वह निर्दोष साधन बोले और प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह साधन में यथार्थ दोषों का उद्भावन करे । ___ जैनदर्शन नैयायिकों के तथा बौद्धों के द्वारा प्रतिपादित निग्रहस्थान को स्वीकार नहीं करता है तथा छल, जाति और निग्रहस्थान द्वारा जयपराजय व्यवस्था भी नहीं मानता है । इस विषय में आचार्य अकलंकदेव ने अष्टशती में कहा है स्वपक्षसिद्धिरेकस्य निग्रहोऽन्यस्य वादिनः । नासाधनांगवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः ॥'
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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