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२३२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . . 'नवकम्बलोऽयम्' । ऐसा कहने वाले का तात्पर्य यह है कि इस व्यक्ति के पास नूतन कम्बल है । किन्तु सुनने वाला दूसरा व्यक्ति छल द्वारा कहता है कि इसके पास नौ कम्बल कैसे हो सकते हैं । यह वाक्छल है । संभव अर्थ में अतिसामान्य धर्म के सम्बन्ध से असंभव अर्थ की कल्पना करना सामान्य छल है । जैसे किसी ने कहा कि यह ब्राह्मण विद्याचरण से सम्पन्न है'। ऐसा कहने वाले का तात्पर्य केवल इतना है कि इस ब्राह्मण में विद्याचरण का होना संभव है । किन्तु दूसरा व्यक्ति छल से कहता है कि यदि इस ब्राह्मण में विद्याचरण का होना संभव है तो व्रात्य में भी विद्याचरण संभव है । क्योंकि व्रात्य भी ब्राह्मण है । उपनयन आदि संस्कारों से रहित ब्राह्मण को व्रात्य कहते हैं । यहाँ ब्राह्मणत्व अतिसामान्य धर्म है । क्योंकि वह विद्याचरण सम्पन्न ब्राह्मण में तथा व्रात्य में भी पाया है । अतः यह सामान्य छल है । धर्म के विकल्प द्वारा निर्देश करने पर अर्थ के सद्भाव का निषेध करना उपचार छल है । जैसे किसी ने कहा कि 'मञ्च शब्द कर रहा है'। ऐसा कहने पर दूसरा व्यक्ति कहता है कि मञ्च शब्द नहीं कर सकता है, किन्तु पञ्च पर स्थित पुरुष शब्द करता है । यहाँ मञ्च शब्द कर रहा है', यह वाक्य लक्षणा धर्म के विकल्प से कहा गया है । किन्तु दूसरा व्यक्ति शक्ति धर्म के विकल्प से उसका निषेध करता है । अतः यह उपचार छल है । जाति का स्वरूप :
साधर्म्यवैधाभ्यां प्रत्यवस्थापनं जातिः । साधर्म्य दिखलाकर किसी वस्तु की सिद्धि करने पर उसी साधर्म्य द्वारा उसका निषेध करना अथवा वैधर्म्य द्वारा किसी वस्तु की सिद्धि करने पर उसी वैधर्म्य द्वारा उसका निषेध करना जाति कहलाती है । जाति के साधर्म्यसमा, वैधर्म्यसमा इत्यादि २४ भेद हैं । साधर्म्यसमा का उदाहरण
कोई कहता है कि आत्मा क्रियावान् है, क्योंकि उसमें क्रिया का कारणभूत गुण प्रयत्न पाया जाता है । जैसे पत्थर में क्रिया का कारणभूत गुण होने से वह क्रियावान् है । ऐसा कहने पर दूसरा व्यक्ति कहता है कि आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि विभु द्रव्य निष्क्रिय होता है, जैसे आकाश । यहाँ पत्थर के साधर्म्य से आत्मा में क्रियावत्त्व सिद्ध करने परं पुनः आकाश के साधर्म्य से उसमें निष्क्रियत्व सिद्ध करना साधर्म्यसमा जाति है ।