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________________ षष्ठ परिच्छेद: सूत्र ६४-६९ २२७ प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा अभिन्न अथवा सर्वथा भिन्न मानना फलाभास है । बौद्ध मानते हैं कि प्रमाण का फल प्रमाण से सर्वथा अभिन्न है । इसके विपरीत योग मानते हैं कि प्रमाण का फल प्रमाण से I सर्वथा भिन्न है । इस प्रकार फल को प्रमाण से सर्वथा अभिन्न या सर्वथा भिन्न मानना फलाभास है । प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा अभिन्न मानने में दोष बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं अभेदे तद्व्यवहारानुपपत्तेः ॥ ६७॥ पक्ष प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा अभिन्न मानने पर यह प्रमाण है और यह उसका फल है, ऐसा भेद व्यवहार नहीं बन सकेगा । सर्वथा अभेद में या तो प्रमाण ही रहेगा या फल ही रहेगा, दोनों नहीं रह सकते हैं । यदि यहाँ बौद्ध कहना चाहें कि प्रमाण और फल में अभेद मानने पर भी अतद्व्यावृत्ति से प्रमाण और फल का व्यवहार बन जायेगा तो बौद्धों के इस कथन में दोष बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं— व्यावृत्त्यापि न तत्कल्पना फलान्तराद्व्यावृत्याऽफलत्वप्रसंगात् ॥ ६७॥ बौद्ध मानते हैं कि प्रमाण में अप्रमाण की व्यावृत्ति और अफल की व्यावृत्ति दोनों रहती हैं और इससे प्रमाण और फल दोनों का व्यवहार बन जाता है । अर्थात् अप्रमाण की व्यावृत्ति से प्रमाण का व्यवहार और अफल की व्यावृत्ति से फल का व्यवहार होने में कोई विरोध नहीं है । बौद्धों की इस मान्यता का निराकरण करने के लिए कहा गया है कि व्यावृत्ति के द्वारा भी प्रमाण और फल की कल्पना नहीं की जा सकती है । क्योंकि जिस प्रकार प्रमाण में विजातीय अफल की व्यावृत्ति है उसी प्रकार सजातीय फलान्तर की भी व्याप्ति है । और ऐसी स्थिति में फलान्तर की व्यावृत्ति से. उसमें अफलत्व का प्रसंग आता है । बौद्धों के यहाँ अप्रमाण की व्यावृत्ति से प्रमाण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । इसी बात को बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं प्रमाणान्तराद् व्यावृत्येवाप्रमाणत्वस्य ॥६९॥ यदि इसमें अप्रमाण की व्यावृत्ति होने से इसे प्रमाण माना जाय तो प्रमाणान्तर की व्यावृत्ति से इसे अप्रमाण भी मानना पड़ेगा । अर्थात् जिस प्रकार फलान्तर की व्यावृत्ति से उसमें अफलत्व का प्रसंग आता है उसी
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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