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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
की सिद्धि के लिए अनुमान प्रमाण स्वीकार करता है तो उसे अनुमा, प्रमाण को मानना ही पड़ता है । इस प्रकार उसकी प्रमाण की एक संख्या का व्याघात हो जाता है । ____ सौगत आदि के द्वारा अभिमत संख्या को भी संख्याभास बतलाते
तर्कस्येव व्याप्तिगोचरत्वे प्रमाणान्तरत्वमप्रमाणस्याव्यवस्थापकत्वात् ॥५९॥
जैसे कि तर्क को व्याप्ति का विषय करने वाला मानने पर सौगत आदि को उसे एक पृथक् प्रमाण मानना ही पड़ता है । क्योंकि अप्रमाणरूप कोई भी ज्ञान व्याप्ति का व्यवस्थापक ( निश्चायक ) नहीं हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि सौगत आदि व्याप्ति ग्राहक तर्क प्रमाण को मानते हैं तो उनको एक प्रमाण अधिक मानना पड़ेगा और तब उनके द्वार अभिमत प्रमाण की संख्या विघटित हो जायेगी।
अब यह बतलाते हैं कि चार्वाक आदि के द्वारा अभिमत प्रमाण कं संख्या क्यों विघटित हो जाती है।
प्रतिभासभेदस्य च भेदकत्वात् ॥६०॥ प्रतिभास का भेद प्रमाणों का भेदक होता है । चार्वाक मत में प्रत्यक्ष में अनुमान का अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता है । क्योंकि दोनों का पृथक् पृथक् प्रतिभास होता है । इसी प्रकार सौगतादि के मत में व्याप्ति ग्राहक तर्क प्रमाण का प्रत्यक्षादि प्रमाणों में अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता है । क्योंकि तर्क तथा प्रत्यक्षादि प्रमाणों में प्रतिभास भेद पाया जाता है । यही कारण है कि प्रत्यक्ष से अनुमान का भिन्न प्रतिभास होने से चार्वाक की तथा प्रत्यक्षादि से तर्क का भिन्न प्रतिभास होने से सौगत आदि की प्रमाणसंख्या विघटित हो जाती है । इस प्रकार संख्याभास का वर्णन समाप्त हुआ । विषयाभास
अब प्रमाण के विषयाभास को बतलाने के लिए सूत्र कहते हैंविषयाभासः सामान्यं विशेषो द्वयं वा स्वतन्त्रम् ॥६१॥ केवल सामान्य को, केवल विशेष को अथवा दोनों को स्वतन्त्र रूप से