________________
षष्ठ परिच्छेद: सूत्र ४७-५३
२२१
अनुमान के पाँच अवयवों में से कम अवयवों का प्रयोग करने पर तथा विपरीत प्रयोग करने पर प्रकृत अर्थ ( साध्य ) का ज्ञान स्पष्टरूप से नहीं हो पाता है । इसलिए कम अवयवों के प्रयोग को तथा अववयों के विपरीत प्रयोग को बालप्रयोगाभास कहा गया है । इसका तात्पर्य यह है कि अल्पज्ञानी पुरुष को साध्य की प्रतिपत्ति कराने के लिए पाँचों अवयवों का प्रयोग आवश्यक है । तथा यह भी आवश्यक है कि अवयवों का प्रयोग का क्रम विपरीत न हो । अर्थात् ऐसा न हो कि पहले निगमन कह दिया और फिर उपनय कहा । ऐसा करने से अल्पज्ञानी को साध्य की प्रतिपत्ति ठीक से नहीं हो सकेगी ।
आगमाभास का स्वरूप
रागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ॥५१॥
राग, द्वेष और मोह से आक्रान्त ( परिव्यात ) पुरुष के वचनों के द्वारा पदार्थ का जो ज्ञान होता है वह आगमाभास कहलाता है । जो पुरुष रागी, द्वेषी और मोही है वह वस्तुतत्त्व के विपरीत भी कथन कर सकता है । रागादि से ग्रस्त होने के कारण उसके वचनों की कोई प्रामाणिकता नहीं रहती है । अतः उसके वचनों को सुनकर पुरुषों को किसी पदार्थ का जो ज्ञान होता है वह आगमाभास है ।
आगमाभास का लौकिक उदाहरण
यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति धावध्वं माणवकाः ॥ ५२ ॥
जैसे किसी ने कहा कि बालको ! दौड़ो, नदी के किनारे लड्डुओं के ढेर लगे हैं, तो यह आगमाभास है । इस कथन का तात्पर्य यह है कि कोई पुरुष दुष्ट बालकों के व्यवहार से व्याकुल हो गया था और उसने बालकों से पीछा छुड़ाने के लिए छलपूर्ण वचन बोलकर उन्हें नदी के किनारे भेज दिया । उसने ऐसा काम द्वेषवश किया और झूठ भी बोला । कोई पुरुष राग के वश होकर भी मनोविनोद के लिए उक्त प्रकार के या अन्य प्रकार के वचन बोल सकता है । अतः यह आगमाभास का लौकिक उदाहरण है ।
आगमाभास का शास्त्रीय उदाहरण अङ्गुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥ ५३ ॥