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________________ २१२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन आगमबाधित पक्षाभास का उदाहरण प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवत् ॥ १८॥ .. धर्म परलोक में दुःख देता है, पुरुष के आश्रित होने से, अधर्म की तरह । जो पुरुष के आश्रित होता है वह दु:खदायी होता है, जैसे अधर्म । यद्यपि धर्म और अधर्म दोनों पुरुष के आश्रित हैं, फिर भी आगम में यह लिखा है कि धर्म परलोक में सुख देता है । अतः यह आगमबाधित पक्षाभास का उदाहरण है । लोकबाधित पक्षाभास का उदाहरण शुचि नरशिरःकपालं प्राण्यङ्गत्वाच्छंखशुक्तिवत् ॥१९॥ मनुष्य के शिर का कपाल पवित्र है, प्राणी का अंग होने से । जो प्राणी का अंग होता है वह पवित्र होता है, जैसे शंख और शुक्ति ( सीप ) । लोक में प्राणी का अंग होने पर भी किसी को पवित्र और किसी को अपवित्र माना गया है । किन्तु मनुष्य के शिर के कपाल को तो सर्वथा अपवित्र ही माना गया है । अतः यह लोकबाधित पक्षाभास का उदाहरण है । स्ववचनबाधित पक्षाभास का उदाहरण माता मे वन्ध्या पुरुषसंयोगऽप्यगर्भत्वात् प्रसिद्धवन्ध्यावत् ॥२०॥ कोई कहता है कि मेरी माता वन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी उसके गर्भ नहीं रहता है, जैसे कि प्रसिद्ध वन्ध्या । यह स्ववचनबाधित पक्षाभास का उदाहरण है । क्योंकि उसका कथन उसी के वचनों से बाधित हो जाता है । यदि उसकी माता वन्ध्या है तो उसका जन्म कैसे हुआ ? हेत्वाभास के भेद हेत्वाभासा असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाकिञ्चित्कराः ॥२१॥ हेत्वाभास के चार भेद हैं-असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिंचित्कर। असिद्ध हेत्वाभास का स्वरूप . असत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः ॥२२॥ .
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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