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________________ षष्ठ परिच्छेद: सूत्र १०- १७ २११ अनिष्ट पक्षाभास है । क्योंकि मीमांसक मत में शब्द को नित्य माना गया है, अनित्य नहीं । सिद्ध पक्षाभास का उदाहरण सिद्धः श्रावण: शब्द इति ॥ १४ ॥ 1 यदि कोई व्यक्ति कहता है कि शब्द श्रावण ( श्रोत्र इन्द्रिय का विषय ) है तो यह सिद्ध पक्षाभास है । श्रोत्र इन्द्रिय का विषय होने से शब्द श्रावण कहलाता है । यह बात हर कोई जानता है कि शब्द कान से सुना जाता है । तब यह कहना कि शब्द श्रावण है, सिद्ध पक्षाभास है । क्योंकि असिद्ध को साध्य बनाया जाता है, सिद्ध को नहीं । परन्तु यहाँ सिद्ध को साध्य बनाया गया है । बाधित पक्षाभास के भेद बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥ १५ ॥ बाधित पक्षाभास प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक और स्ववचनों से बाधित होने के कारण पाँच प्रकार का है । C प्रत्यक्षबाधित पक्षाभास का उदाहरण तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा अनुष्णोऽग्निर्द्रव्यत्वाज्जलवत् ॥ १६ ॥ कोई कहता है कि अनि अनुष्ण (शीतल) है, क्योंकि वह द्रव्य है, जो द्रव्य होता है वह शीतल होता है, जैसे जल । यह प्रत्यक्षबाधित पक्षाभास का उदाहरण है । स्पार्शन प्रत्यक्ष से प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करता है कि अनि उष्ण है । अतः जो भी उसे अनुष्ण कहता है उसका कथन प्रत्यक्षबाधित हैं । अनुमानबाधित पक्षाभास का उदाहरण अपरिणामी शब्दः कृतकत्वाद्घटवत् ॥ १७॥ शब्द अपरिणामी ( नित्य ) है, कृतक होने से, घट की तरह । यहाँ 'शब्द अपरिणामी है' यह पक्ष अनुमान से बाधित है । क्योंकि कृतकत्व हेतु जन्य अनुमान से तो यही सिद्ध होता है कि जो कृतक है वह परिणामी ( अनित्य ) होता है, जैसे घट ।
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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