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२१० . प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन उसके सदृश है' ऐसा जानना प्रत्यभिज्ञानाभास है । जैसे एक साथ उत्पन्न हुए दो बालकों में विपरीत ज्ञान हो जाता है । अर्थात् सदृश बालक को 'यह वही है' ऐसा जान लेते हैं और उसी बालक को यह उसके सदृश है' ऐसा जान लेते हैं । सदृश बालक में 'यह वही है' इस प्रकार का ज्ञान एकत्वप्रत्यभिज्ञानाभास है और उसी बालक में यह उसके सदृश है' ऐसा ज्ञान सादृश्यप्रत्यभिज्ञानाभास है।
तर्काभास का स्वरूप असम्बद्धे तज्ज्ञानंताभासं यावाँस्तत्पुत्रः स श्यामो यथा ॥१०॥
अविनाभाव सम्बन्ध से रहित वस्तु में अविनाभाव का ज्ञान करना तर्काभास है । जैसे तत्पुत्रत्व और श्यामत्व में कोई अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है । फिर भी यह कहना कि जो भी देवदत्त का पुत्र होगा वह श्याम होगा, यह तर्काभास है।
अनुमानाभास का स्वरूप
इदमनुमानाभासम् ॥११॥ यह अनुमानाभास है जिसे आगे बतलाया जा रहा है । अनुमान के पक्ष, हेतु, दृष्टान्त आदि कई अवयव हैं । अतः अवयवाभासों को बतलाने से उनके समुदायरूप अनुमानाभास का ज्ञान सरलता पूर्वक हो जाता है ।
पक्षाभास का स्वरूप
तत्रानिष्टादिः पक्षाभासः ॥१२॥ यह पतले बतलाया जा चुका है कि साध्य अथवा पक्ष इष्ट, अबाधित और असिद्ध होता है । इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अनिष्ट, बाधित और सिद्ध को पक्ष बतलाता है तो वह पक्षाभास है । साध्य और पक्ष में विशेष अन्तर नहीं है । साध्यधर्म का जो आधार होता है वह पक्ष कहलाता है । जैसे अग्नि साध्य है और अग्निसहित पर्वत पक्ष है ।
. अनिष्ट पक्षाभास का उदाहरण
अनिष्टो मीमांसकस्यानित्यः शब्दः ॥१३॥ यदि मीमांसक कहता है कि शब्द अनित्य है तो यह मीमांसक के लिए