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प्रमेयकमलामातण्ड परिशीलन
पञ्चम परिच्छेद
इस परिच्छेद में प्रमाण के फल का विवेचन किया गया है ।
प्रमाण का फल अज्ञाननिवृत्तिः हानोपादानोपेक्षाश्च फलम् ॥१॥ अज्ञाननिवृत्ति, हान, उपादान और उपेक्षा ये प्रमाण के फल हैं।
जिस पदार्थ के विषय में प्रमाण प्रवृत्त होता है उस विषयक अज्ञान की निवृत्ति प्रमाण के द्वारा हो जाती है । जैसे किसी व्यक्ति ने प्रमाण के द्वारा घट को जाना तो इसके पहले घटविषयक जो अज्ञान था वह दूर हो जाता है । यही अज्ञाननिवृत्ति है और यह अज्ञाननिवृत्ति प्रमाण का साक्षात् फल है । पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं-हेय, उपादेय और उपेक्षणीय । जब किसी पदार्थ के विषय में किसी ने जाना कि यह सर्प है तो वह व्यक्ति सर्प के पास नहीं जायेगा, क्योंकि सर्प हेय है । यहाँ सर्प का हान ( त्याग ) कर देना प्रमाण का फल है । जब किसी ने प्रमाण के द्वारा जाना कि यह स्वर्ण है तो वह उसके पास जाकर उसका उपादान ( ग्रहण ) कर लेगा। यहाँ स्वर्ण का उपादान कर लेना प्रमाण का फल है । जब मार्ग में जाते हुए किसी व्यक्ति को पैर के स्पर्श से ऐसा ज्ञान होता है कि यह तृण है, तब वह तृण की उपेक्षा कर देता है । क्योंकि तृण न हेय हैं और न उपादेय है किन्तु उपेक्षणीय है । यहाँ तृण में उपेक्षाबुद्धि होना भी प्रमाण का फल है । इस प्रकार हमको प्रमाण के द्वारा अनिष्ट पदार्थ में हानबुद्धि होती है, इष्ट पदार्थ में उपादान बुद्धि होती है और उपेक्षणीय पदार्थ में उपेक्षाबुद्धि होती है । अतः हान, उपादान और उपेक्षा ये तीनों प्रमाण के परम्पराफल हैं । प्रमाण के द्वारा पहले पदार्थ का ज्ञान होता है और इसके बाद हान आदि होते हैं । इसलिए अज्ञाननिवृत्ति प्रमाण का साक्षात् फल है और हान आदि तीन परम्पराफल हैं । ___यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि प्रमाण का फल प्रमाण से अभिन्न होता है या भिन्न । बौद्ध मानते हैं कि प्रमाण का फल प्रमाण से अभिन्न है और यौग ( नैयायिक-वैशेषिक ) मानते हैं कि प्रमाण का फल प्रमाण से भिन्न है । इस विप्रत्तिपत्ति का निराकरण आगे के सूत्र में किया गया है