SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ - चतुर्थ परिच्छेद : सूत्र ९ पदार्थों का विवेचन प्रमेयकमलमार्तण्ड में नहीं किया गया है । यह अवश्य बतलाया गया है कि ये सोलह पदार्थ वैशेषिकों के द्वारा माने गये छह पदार्थों के अतिरिक्त हैं । इन सोलह पदार्थों के अस्तित्व के कारण वैशेषिकाभिमत षट् पदार्थ की संख्या का व्याघात हो जाता है । नैयायिकों के इन सोलह पदार्थों का अन्तर्भाव वैशेषिकों के द्वारा अभिमत छह पदार्थों में भी नहीं हो सकता है । अन्यथा द्रव्यादि छह पदार्थों का प्रमाण और प्रमेय इन दो पदार्थों में अन्तर्भाव हो जाने से द्रव्यादि छह प्रकार के पदार्थों की व्यवस्था भी नहीं बनेगी । वास्तव में नैयायिकों के द्वारा अभिमत सोलह पदार्थों की मान्यता भी समीचीन नहीं है । क्योंकि उनके द्वारा अभिमत प्रमाण आदि के स्वरूप का इसके पूर्व में यथास्थान निराकरण किया जा चुका है । उक्त सोलह पदार्थों में विपर्यय और अनध्यवसाय का ग्रहण नहीं किया गया है । इस कारण नैयायिकों के द्वारा अभिमत सोलह पदार्थों की संख्या का भी व्याघात हो जाता है । चतुर्थ परिच्छेद समाप्त.
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy