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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
पर समवाय के विषय में अनेक दूषण आने के कारण वैशेषिकों ने उसका जैसा स्वरूप माना है वह वैसा सिद्ध नहीं होता है ।
इस प्रकार अभी तक वैशेषिकों के द्वारा अभिमत द्रव्यादि छह पदार्थों का विवेचन किया गया है । यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि उक्त छह प्रकार के पदार्थ भावात्मक ( सत्स्वरूप ) हैं । इनके अतिरिक्त वैशेषिक दर्शन में एक अभावात्मक ( असत्रूप ) पदार्थ भी माना गया है जिसका नाम अभाव है । इस अभाव पदार्थ का विवेचन प्रमेयकमलमार्तण्ड में इस परिच्छेद में नहीं किया गया है । संभवतः इसका कारण यही हो सकता है कि लेखक का उद्देश्य सत् पदार्थों का विवेचन करना ही रहा हो ।
अभावपदार्थविचार
यहाँ संक्षेप में यह जान लेना आवश्यक है कि वैशेषिकों के अनुसार अभाव के चार भेद होते हैं - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव । कार्य की उत्पत्ति के पहले कारण में कार्य के अभाव को प्रागभाव कहते हैं । जैसे घट की उत्पत्ति के पहिले मिट्टी में घट का अभाव प्रागभाव है । प्रागभाव अनादि और सान्त है । कार्य के नष्ट हो जाने पर
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कार्य के अभाव को प्रध्वंसाभाव कहते हैं । जैसे घट के फूट जाने पर घट का प्रध्वंसाभाव हो जाता है । प्रध्वंसाभाव सादि और अनन्त है । सजातीय पदार्थों में परस्पर में जो भेद पाया जाता है वह अन्योन्याभाव है । घट और पट में अन्योन्याभाव रहता है । घट पट नहीं है तथा पट घट नहीं है । यही उनमें अन्योन्याभाव है । विजातीय जिन पदार्थों में कभी कोई सम्बन्ध नहीं रहता है उनमें अत्यन्ताभाव होता है । चेतन और अचेतन पदार्थों में त्रैकालिक अत्यन्ताभाव पाया जाता है । चेतन कभी भी अचेतनरूप नहीं होता है और अचेतन कभी भी चेतनरूप नहीं होता है । यही उनमें अत्यन्ताभाव है । जैनदर्शन में अभाव कोई पदार्थ नहीं है । अभाव को तो भावान्तरस्वरूप माना गया है । जैसे घटाभाव का मतलब होता है घटरहित भूतल । नैयायिकाभिमत षोडशपदार्थवाद
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नैयायिकों के अनुसार पदार्थ सोलह होते हैं जो इस प्रकार हैंप्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान । इन सोलह