________________
२००
प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन.
आवश्यकता नहीं है । वैशेषिकों ने स्वयं माना है कि विशेष पदार्थों में विशेष नामक पदार्थ नहीं रहता है, फिर भी एक विशेष दूसरे विशेष से स्वत: व्यावृत्त हो जाता है । उसी प्रकार परमाणु, आत्मा आदि अन्य समस्त पदार्थ भी अपने अपने असंकीर्ण स्वभाव की अपेक्षा से परस्पर में व्यावर्तक हो जाते हैं । ऐसा मानने में कोई विरोध भी नहीं है । इसलिए परमाणु, आत्मा आदि में परस्पर में भेद कराने के लिए किसी विशेष पदार्थ की कल्पना करना तर्कसंगत नहीं है ।
समवायपदार्थविचार पूर्वपक्ष
वैशेषिक समवाय को एक पदार्थ मानते हैं । समवाय एक सम्बन्ध है । उसका लक्षण इस प्रकार हैअयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामिहेदंप्रत्ययहेतुर्यः सम्बन्धः स समवायः । अर्थात् आधार और आधेयभूत अयुतसिद्धपदार्थों में इसमें यह है' इस प्रकार के ज्ञान का कारणभूत जो सम्बन्ध है, वह समवाय कहलाता है । यह सम्बन्ध अयुतसिद्ध दो पदार्थों में होता है । जिन दो पदार्थों में से एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के आश्रित रहता है वे दोनों अयुतसिद्ध कहलाते हैं । इन दोनों पदार्थों को पृथक् नहीं किया जा सकता है । दोनों में से एक पदार्थ आधार होता है और दूसरा आधेय । जैसे तन्तु और पट में समवाय सम्बन्ध है । तन्तु और पट अयुतसिद्ध हैं तथा तन्तु पट का आधार है और पट आधेय है । इन तन्तुओं में पट हैऐसा जो ज्ञान होता है वह समवाय सम्बन्ध के कारण होता है । स्पष्ट बात यह है कि समवाय सम्बन्ध पाँच युगलों में रहता है । वे पाँच युगल इस प्रकार हैं-अवयव और अवयवी, गुण और गुणी, गोत्वादि जाति और व्यक्ति, क्रिया और क्रियावान् तथा नित्य द्रव्य और विशेष पदार्थ, इन पाँच युगलों में अयुतसिद्धि रहती है । अतः इन पाँच युगलों में जो पास्परिक सम्बन्ध है वह समवाय कहलाता
उत्तरपक्ष
वैशेषिकों ने समवाय का जैसा स्वरूप बतलाया है वह प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । सबसे पहले यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि