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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन.
द्वारा किसी वस्तु का ऊपर के प्रदेशों के साथ विभाग और नीचे के प्रदेशों के साथ संयोग होने का नाम अपक्षेपण है । अर्थात् किसी वस्तु का ऊपर से नीचे की ओर आना अपक्षेपण है । किसी वस्तु का सिकुड़ना आकुञ्चन है । किसी वस्तु का फैलना प्रसारण है । और गमन करने का नाम गमन है । उक्त पाँच प्रकार का कर्म केवल पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और मन इन पाँच द्रव्यों में रहता है । कर्म अनित्य होता है। उत्तरपक्ष
वैशेषिक कर्म को एक स्वतन्त्र और पृथक् पदार्थ मानते हैं । परन्तु ऐसा कर्म पदार्थ किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । कर्म तो क्रिया का नाम है । पदार्थों का एक देश से दूसरे देश में प्राप्ति का हेतु जो परिस्पन्दात्मक ( चलनात्मक ) परिणाम या क्रिया है उसी का नाम कर्म है । और इस प्रकार के कर्म में उत्क्षेपण आदि पाँच प्रकार के कर्मों का अन्तर्भाव हो जाता है । ऐसी स्थिति में उत्क्षेपण आदि को पृथक् पृथक् कर्म मानना ठीक नहीं है । अन्यथा भ्रमण, स्पन्दन आदि को भी पृथक् कर्म मानना पड़ेगा । और तब कर्म की पाँच संख्या का व्याघात अवश्यंभावी है । वास्तव में क्रियारूप से परिणत वस्तु को छोड़कर अन्य कोई पृथक् कर्म प्रतीत नहीं होता है जिसे कर्म पदार्थ कहा जा सके । अतः कर्म कोई पृथक्
और स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है । घट-पटादि पदार्थों से पृथक् स्वतन्त्र कर्म पदार्थ की कल्पना करने से कोई लाभ भी नहीं है । इस प्रकार वैशेषिकाभिमत कर्म पदार्थ का संक्षेप में निराकरण किया गया है।
सामान्यपदार्थविचार वस्तु में अनुगताकार ( सदृश ) प्रतीति कराने वाला पदार्थ सामान्य कहलाता है । वैशेषिकों के अनुसार सामान्य पदार्थ एक, व्यापक और नित्य है । इसके दो भेद हैं-पर सामान्य और अपर सामान्य । इनमें सत्त्व या सत्ता पर सामान्य है तथा द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व, गोत्व, मनुष्यत्व आदि अपर सामान्य हैं । सामान्य द्रव्य, गुण और कर्म इन तीन पदार्थों में रहता है । वैशेषिकाभिमत इस प्रकार के सामान्य का निराकरण इसी परिच्छेद के प्रारंभ में गोत्वादि तिर्यक् सामान्य का निरूपण करते समय विस्तार से किया जा चुका है । अत: उसको यहाँ पुन: नहीं लिखा है । '