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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्वं, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दु:ख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार ये २४ गुण हैं । इनमें से गन्ध पृथिवी का विशेष गुण है, रस जल का विशेषगुण है, रूप अग्नि का विशेष गुण है, स्पर्श वायु का विशेष गुण है और शब्द आकाश का विशेष गुण है । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार ये ९ आत्मा के विशेष गुण
रूप गुण केवल चक्षु इन्द्रिय के द्वारा गृहीत होता है तथा यह गुण पृथिवी, जल और अग्नि इन तीन द्रव्यों में रहता है । रस गुण केवल रसना इन्द्रिय के द्वारा गृहीत होता है । यह पृथिवी और जल इन दो द्रव्यों में रहता है । गन्ध गुण केवल घ्राण इन्द्रिय के द्वारा गृहीत होता है और केवल पृथिवी में रहता है । स्पर्श गुण केवल स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा गृहीता होता है । यह गुण पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चार द्रव्यों में रहता है । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग और विभाग ये पाँच गुण सभी ९ द्रव्यों में रहते हैं । परत्व और अपरत्व गुण पृथिवी आदि चार तथा मन इन पाँच द्रव्यों में रहता है । गुरुत्व गुण पृथिवी और जल में रहता है । द्रवत्व गुण पृथिवी, जल और अग्नि में रहता है । स्नेहगुण केवल जल में रहता है। शब्द गुण केवल आकाश में रहता है । संस्कार गुण के तीन भेद हैं-वेग, भावना और स्थितिस्थापक । वेग पृथिवी आदि चार तथा मन में रहता है । स्थितिस्थापक चटाई आदि पृथिवी में रहता है । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रत्यत्न, धर्म, अधर्म और भावना नामक संस्कार ये ९ गुण केवल आत्मा में रहते हैं । इसीलिए इन्हें आत्मा के विशेष गुण कहते हैं । उक्त २४ गुणों में से कुछ गुण मूर्त हैं और कुछ अमूर्त हैं । कुछ गुण इन्द्रिय ग्राह्य हैं और कुछ अतीन्द्रिय हैं । कुछ गुण नित्य हैं और कुछ अनित्य हैं । उत्तरपक्ष
वैशेषिकों ने २४ गुण माने हैं और उनका जैसा स्वरूप बतलाया है वह वास्तविक नहीं है । यह बतलाया गया है कि रूप गुण पृथिवी, जल
और अग्नि इन तीन द्रव्यों में ही रहता है । किन्तु ऐसा नहीं है । रूप गुण वायु में भी रहता है । वैशेषिकों द्वारा यह भी बतलाया गया है कि रस गुण पृथिवी और जल इन दो द्रव्यों में ही रहता है तथा गन्ध गुण केवल पृथिवी