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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . . चार्वाक दर्शन पर कोई सूत्र ग्रन्थ बनाया था, जिसके सूत्रों का उल्लेख जैन, . बौद्ध आदि दर्शनों के ग्रन्थों में मिलता है । चार्वाक दर्शन के अनुयायी लोगों को प्रिय लगने वाली बातें इस प्रकार कहते थे
यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
अर्थात् जब तक जिओ, सुख से जिओ, ऋण लेकर घृत, दूध आदि पिओ । ऋण चुकाने की चिन्ता भी मत करो, क्योंकि शरीर के नष्ट हो जाने पर उसका पुनः आगमन ( जन्म ) नहीं होता है । .
चार्वाकों का सिद्धान्त है कि पृथिवी, जल, अग्नि और वायु-इन चार भूतों का संघात ही आत्मा है । मरण ही मुक्ति है, कोई परलोक नहीं है, इत्यादि । बाह्य दृष्टि प्रधान होने के कारण चार्वाक ने केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण माना है, अनुमान आदि को नहीं । अर्थात् नेत्र आदि इन्द्रियों से जो कुछ दृष्टिगोचर होता है वही सत्य है, अन्य कुछ नहीं । चार्वाक का प्रमुख सिद्धान्त है-देहात्मवाद । उनका कहना है कि जिस प्रकार महुआ, गुड़
आदि पदार्थों के संमिश्रण से मदिरा बनने पर उसमें मादक शक्ति स्वयं आ जाती है, उसी प्रकार पृथिवी, जल, अग्नि और वायु-इन चार भूतों के विशिष्ट संयोग से शरीर की उत्पत्ति के साथ उसमें चैतन्यशक्ति भी उत्पन्न हो जाती है । अतः चैतन्य आत्मा का धर्म न होकर शरीर का ही धर्म है । बौद्धदर्शन
__बौद्धदर्शन का प्रारम्भ महात्मा बुद्ध के द्वारा हुआ है । यद्यपि बुद्ध ने विशेषरूप से धर्म का ही उपदेश दिया था, दर्शन का नहीं, फिर भी बुद्ध के बाद बौद्ध-दार्शनिकों ने बुद्ध-वचनों के आधार से उनमें दार्शनिक तत्त्वों को खोज निकाला । अनात्मवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद, क्षणभङ्गवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद, अन्यापोहवाद आदि बौद्धदर्शन के प्रमुख सिद्धान्त हैं । बौद्धदर्शन में आत्मा का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है, किन्तु रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान-इन पाँच स्कन्धों के समुदाय को ही आत्मा माना गया है । प्रतीत्यसमुत्पाद का अर्थ है-हेतु और प्रत्यय की अपेक्षा से पदार्थों की उत्पत्ति । इसी को सापेक्षकारणतावाद-भी कहते हैं । बौद्ध प्रत्येक पदार्थ को क्षणिक मानते हैं । उनका कहना है कि प्रत्येक