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________________ प्रस्तावना ने अकारादि प्रत्येक वर्ण को नित्य, एक और व्यापक मानकर वेद को अपौरुषेय सिद्ध किया है। वेदान्तदर्शन उपनिषदों के सिद्धान्तों पर प्रतिष्ठित होने के कारण इस दर्शन का नाम वेदान्त प्रसिद्ध हुआ है । उपनिषदों की रचना वेदों के बाद हुई है । इसलिए उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं । ब्रह्मसूत्र ( वेदान्त सूत्र ) के रचयिता महर्षि बादरायण व्यास हैं । शंकर, रामानुज और मध्व-ये ब्रह्मसूत्र के प्रसिद्ध भाष्यकार हैं । वेदान्तदर्शन के अनुसार ब्रह्म ही एकमात्र तत्त्व है । इस संसार में जो नानात्मकता दृष्टिगोचर होती है वह सब मायिक (माया-अविद्या जनित ) है । मीमांसकों की तरह वेदान्ती भी प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव-इन छह प्रमाणों को मानते हैं । वेदान्तियों ने निम्न लिखित श्रुति के द्वारा ब्रह्म की सिद्धि की सर्वं खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन । आरामं तस्य पश्यन्ति न तं पश्यति कश्चन ॥ . अर्थात् यह सब ब्रह्म है, इस जंगत् में नाना कुछ भी नहीं है, सब उसी की पर्यायों को देखते हैं, किन्तु उसको कोई नहीं देखता है । वेदान्तियों ने इस श्रुति का समर्थन प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से भी किया है । चार्वाक दर्शन___वैदिककाल में यज्ञानुष्ठान तथा तपश्चरण पर विशेष बल दिया जाता था । मनुष्यों को ऐहिक बातों की अपेक्षा पारलौकिक बातों की चिन्ता विशेषरूप से रहती थी । इस बात की प्रतिक्रियास्वरूप चार्वाक दर्शन का उदय हुआ । इस दर्शन का सब से प्राचीन नाम लौकायतिक है । साधारण लोगों की तरह आचरण करने के कारण चार्वाक दर्शन के अनुयायियों का लौकायतिक नाम प्रचलित हुआ । चारु ( सुन्दर ) वाक् ( बात ) को अर्थात् लोगों को प्रिय लगने वाली बात को कहने के कारण अथवा आत्मा, परलोक आदि को चर्वण ( भक्षण ) करने के कारण इनका नाम चार्वाक पड़ा । बृहस्पति नामक आचार्य चार्वाक दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं । अतः इस दर्शन का नाम बार्हस्पत्य दर्शन भी है । बृहस्पति ने
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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