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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
की विधि तथा अनुष्ठान का वर्णन कर्ममीमांसा का विषय है । जीव, जगत्
और ईश्वर के स्वरूप तथा सम्बन्ध का निरूपण ज्ञानमीमांसा का विषय है । कर्ममीमांसा को पूर्वमीमांसा तथा ज्ञानमीमांसा को उत्तरमीमांसा भी कहते हैं । किन्तु वर्तमान में कर्ममीमांसा के लिए केवल, मीमांसा शब्द का प्रयोग किया जाता है । और ज्ञानमीमांसा को 'वेदान्त' शब्द से कहा जाता है । ____ महर्षि जैमिनि मीमांसादर्शन के सूत्रकार हैं । मीमांसादर्शन के इतिहास में कुमारिल भट्ट का युग सुवर्ण युग के नाम से कहा जाता है । कुमारिल भट्ट के अनुयायी भाट्ट कहलाते हैं । मीमांसा के आचार्यों में प्रभाकर मिश्र की बड़ी प्रसिद्धि है । प्रभाकर के अनुयायी प्राभाकर कहलाते हैं । इस प्रकार मीमांसादर्शन में भाट्ट और प्राभाकर-ये दो पृथक्-पृथक् सम्प्रदाय हुए हैं । भाट्टों के अनुसार पदार्थ ५ हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और अभाव । वैशेषिक नौ द्रव्य मानते हैं, किन्तु भाट्ट अन्धकार और शब्द-ये दो द्रव्य अधिक मानते हैं । प्राभाकर पदार्थों की संख्या आठ मानते हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, परतन्त्रता, शक्ति, सादृश्य और संख्या । प्राभाकर प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान और अर्थापत्ति-ये पाँच प्रमाण मानते हैं और भाट्ट अभाव सहित छह प्रमाण मानते हैं । मीमांसकों के अनुसार ज्ञान का प्रत्यक्ष नहीं होता है । ज्ञान न तो स्वयं वेद्य है और न ज्ञानान्तर से वेद्य है । अतः वह सदा परोक्ष रहता है । ____ मीमांसकों की मान्यता है कि कोई पुरुष सर्वज्ञ या अतीन्द्रियदर्शी नहीं हो सकता है, क्योंकि किसी भी पुरुष में ज्ञान और वीतरागता का पूर्ण विकास संभव नहीं है । मीमांसक वेद को अपौरुषेय मानते हैं । वेद मुख्य रूप से अतीन्द्रिय पदार्थ धर्म का प्रतिपादक है और अतीन्द्रियदर्शी कोई पुरुष संभव नहीं है । अतः धर्म में वेद ही प्रमाण है । मीमांसकों ने वेद को दोषरहित सिद्ध करने के लिए एक नये उपाय का आविष्कार किया है कि जब वेदों का रचयिता कोई पुरुष ही नहीं है तब उसमें दोष कहां से आ सकते हैं, क्योंकि दोष निराश्रय तो रह नहीं सकते हैं । वेद को अपौरुषेय मानने के कारण मीमांसकों को शब्दमात्र को नित्य मानना पड़ा है, क्योंकि यदि शब्द को अनित्य मानते तो शब्दात्मक वेद को भी अनित्य और पौरुषेय मानना पड़ता, जो कि उन्हें अभीष्ट नहीं है । इस प्रकार मीमांसकों