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१९२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन परममहापरिमाण का अधिकरण होता है वह भी चेतन नहीं होता है, जैसे आकाश । इस प्रकार अनुमान प्रमाण से भी यही सिद्ध होता है कि आत्मा व्यापक नहीं है। ___ यहाँ वैशेषिक देहान्तर में तथा अन्तरालवर्ती प्रदेश में आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए एक विचित्र तर्क देते हैं । उनका कहना है कि देवदत्त की अंगना के शरीर का जो निर्माण होता है उसमें देवदत्त क गुण अर्थात् अदृष्ट कारण होता है, क्योंकि वह कार्य है और देवदत्त का उपकारक है । अदृष्ट को धर्माधर्म अथवा पुण्य-पाप भी कहते हैं । अदृष्ट का दूसरा नाम कर्म भी है । देवदत्त की अंगना के शरीर की उत्पत्ति में देवदत्त का अदृष्ट तभी कारण हो सकता है जब वह शरीर की उत्पत्ति के प्रदेश में विद्यमान रहे । क्योंकि कार्य के देश में जो कारण सन्निहित होता है वही कार्य की उत्पत्ति में व्यापार करता है । अत: देवदत्त की अंगना के शरीर की उत्पत्ति के देश में देवदत्त का अदृष्ट भी विद्यमान रहता है । और जहाँ देवदत्त का अदृष्ट है वहाँ देवदत्त की आत्मा भी अवश्य है । मान लीजिए कि देवदत्त वाराणसी में रहता है और देवदत्तं की अंगना का जन्म लंका में होता है तो देवदत्त की आत्मा का सद्भाव लंका में भी है । इसी प्रकार यदि अमेरिका में देवदत्त के लिए कोई वस्त्र बनता है तो उस वस्त्र की उत्पत्ति में देवदत्त का अदृष्ट कारण होता है और देवदत्त की आत्मा का अस्तित्व अमेरिका में भी मानना पड़ता है । इससे यही सिद्ध होता है कि आत्मा व्यापक है और उसका अस्तित्व सर्वत्र रहता है । वैशेषिकों के उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि देवदत्त आदि के लिए भोग्य सामग्री का जो भी लाभ होता है वह तभी हो सकता है जब देवदत्त आदि का अदृष्ट भोग्य सामग्री की उत्पत्ति के स्थान में रहकर उसकी उत्पत्ति में कारण होता हो ।
वैशेषिकों का उपर्युक्त कथन समीचीन नहीं है । यह तो माना जा सकता है कि देवदत्त का अदृष्ट देवदत्त की अंगना के शरीर की उत्पत्ति में कारण होता है । किन्तु उस अदृष्ट को आत्मा का गुण कहना सर्वथा गलत है ।हम कह सकते हैं कि अदृष्ट ( कर्म ) आत्मा का गुण नहीं है, अचेतन होने से, शब्दादि की तरह । जो भी वस्तु अचेतन है वह चेतन आत्मा का गुण नहीं हो सकता है । कर्म तो पौद्गलिक है, वह आत्मा का गुण कैसे हो सकता है ? यथार्थ में प्राणियों का अदृष्ट भोग्य सामग्री की उत्पत्ति में