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________________ १८२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन मैं उसी का स्पर्श कर रहा हूँ' इस प्रकार के प्रत्यभिज्ञान द्वारा रूपादिमान् द्रव्य का ग्रहण होता ही है । यहाँ यह द्रष्टव्य है कि जिस प्रकार रूपादिरहित द्रव्य प्रत्यक्ष में प्रतिभासित नहीं होता है, उसी प्रकार द्रव्यरहित रूपादि भी प्रतिभासित नहीं होते हैं । यदि मातुलिंग द्रव्य की सत्ता न हो तो उसके रूपादि स्वप्न में भी उपलब्ध नहीं हो सकते हैं । एक बात यह भी विचारणीय है कि प्रत्यक्षत्व का मतलब क्या है ? प्रत्यक्षत्व का मतलब है - अनात्मस्वरूप का परिहार करके बुद्धि में अपने स्वरूप का समर्पण करना । बौद्धमत के अनुसार ये द्रव्यरहित रूपादि प्रत्यक्ष में अपने स्वरूप का समर्पण तो करते नहीं है, फिर भी प्रत्यक्षता को स्वीकार करना चाहते हैं । इस कारण ये रूपादि अमूल्यदानक्रयी कहलायेंगे । यदि कोई पुरुष मूल्य दिये बिना कोई वस्तु खरीदना चाहता है तो वह अमूल्यदानक्रयी कहलाता है । इसी प्रकार रूपरसादि द्रव्यरहित होकर बुद्धि में अपना स्वरूप समर्पण नहीं कर सकते हैं, फिर भी प्रत्यक्ष कहलाना चाहते हैं । यही इनका अमूल्यदानक्रयित्व है । इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि अवयवी का अर्थात् रूपादिमान् वस्तु का अभाव मानना सर्वथा असंगत है । अतः अवयवों से कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न घट-पटादि अवयवी द्रव्य को स्वीकार करना चाहिए । वैशेषिकाभिमत षट्पदार्थवाद पूर्वपक्ष वैशेषिक दर्शन के अनुसार द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, . विशेष और समवाय ये ६ पदार्थ हैं । ये छहों पदार्थ परस्पर में अत्यन्त भिन्न हैं । इनमें पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन ये ९ द्रव्य हैं । पृथिवी, जल, अग्नि और वायु ये चार द्रव्य नित्य और अनित्य के भेद से दो प्रकार के हैं । इनमें परमाणुरूप द्रव्य नित्य है और परमाणुओं से उत्पन्न होने वाले द्व्यणुक, त्र्यणुक आदि कार्य द्रव्य अनित्य हैं । इनके अतिरिक्त आकाश आदि ५ द्रव्य नित्य हैं । इनकी उत्पत्ति कभी नहीं होती है । ये सब द्रव्य द्रव्यत्व सामान्य के सम्बन्ध से द्रव्य कहलाते हैं । आत्मा, आकाश, काल और दिशा ये चार द्रव्य व्यापक हैं । और शेष द्रव्य अव्यापक I हैं । गन्ध पृथिवी का विशेष गुण है, रस जल का विशेष गुण है, रूप अग्नि का विशेष गुण है, स्पर्श वायु का विशेष गुण है और शब्द आकाश का
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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