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________________ १६२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन व्यभिचार देखा जाता है । अतः योनि के कारण ब्राह्मणत्व का निश्चय नहीं किया जा सकता है । अर्थात् इस बालक का पिता ब्राह्मण ही था ऐसा निश्चय करना असंभव है । अव्यभिचारी माता-पिता की सन्तान में और व्यभिचारीं माता-पिता सन्तान में कोई विलक्षणता भी नहीं देखी जाती है । जिस प्रकार गर्दभ और अश्व से उत्पन्न घोड़ी की सन्तान में वैलक्षण्य पाया जाता है, उस प्रकार ब्राह्मण और शूद्र से उत्पन्न ब्राह्मणी की सन्तान में वैलक्षण्य नहीं पाया जाता है । अतः माता- 1 - पिता की अव्यभिचारिता को ब्राह्मणत्व का कारण नहीं माना जा सकता है । क्योंकि माता-पिता के व्यभिचाररहित. होने का निर्णय करना अशक्य है । यहाँ एक बात विशेषरूप से विचारणीय है कि माता-पिता के अव्यभिचारित्व से ब्राह्मणत्व मानने वालों के यहाँ व्यास, विश्वामित्र आदि ऋषियों में ब्राह्मणत्व की सिद्धि कैसे होगी । क्योंकि वे अव्यभिचारी माता-पिता की सन्तान नहीं है । अतः माता-पिता का अव्यभिचारित्व ब्राह्मण शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त नहीं है । यह कहना भी ठीक नहीं है कि ब्राह्मण ब्रह्मा से उत्पन्न होने के कारण ब्राह्मण कहलाते हैं । क्योंकि परमत के अनुसार तो सम्पूर्ण मानव जाति ब्रह्मा से उत्पन्न हुई है । तब तो सभी को ब्रह्मण मानना चाहिए । इस दोष का निवारण करने के लिए ऐसा कहना भी ठीक नहीं है कि ब्रह्मा के मुख से जो उत्पन्न हुआ है वह ब्राह्मण है, अन्य नहीं । क्योंकि जब सब मानव ब्रह्मा से उत्पन्न हुए हैं तब उनमें ऐसा भेद करना कि यह मुख से उत्पन्न हुआ है और यह पैर से उत्पन्न हुआ है, सर्वथा असंगत है । एक वृक्ष से उत्पन्न होने वाले फल में मूल, मध्य और शाखा को लेकर भेद नहीं किया जा सकता है । इस प्रकार ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होना भी ब्राह्मण शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त नहीं है । यहाँ यह भी विचारणीय है कि ब्रह्मा ब्राह्मणत्व है या नहीं । यदि ब्रह्मा में ब्राह्मणत्व नहीं है तो फिर ब्रह्मा से ब्राह्मण की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? जिस प्रकार अमनुष्य से मनुष्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती है उसी प्रकार अब्राह्मण से ब्राह्मण की उत्पत्ति भी संभव नहीं है । यदि ब्रह्मा में ब्राह्मणत्व है तो पूरे शरीर में ब्राह्मणत्व है अथवा मुख प्रदेश में ही ब्राह्मणत्व है । यदि ब्रह्मा के पूरे शरीर में ब्राह्मणत्व
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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