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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन .
होती है उसे सामान्य कहते हैं । जैसे गोत्व, मनुष्यत्व आदि सामान्य कहलाते हैं । सामान्य नित्य, एक, व्यापक, निष्क्रिय और निरंश है । इसके दो भेद हैं-पर सामान्य और अपर सामान्य । इनमें सत्ता या सत्त्व पर सामान्य है तथा द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व, गोत्व, मनुष्यत्व आदि अपर सामान्य कहलाते हैं । गाय के उत्पन्न होने पर गोत्व सामान्य उत्पन्न नहीं होता है और गाय के मर जाने पर गोत्व सामान्य का नाश नहीं होता है । क्योंकि वह नित्य है । गोत्वादि सामान्य एक है, अनेक नहीं । एक ही गोत्व सामान्य सब गायों में रहता है । सामान्य व्यापक है । एक ही सामान्य सर्वत्र पाया जाता है । अर्थात् एक ही गोत्व सामान्य समस्त गायों में विद्यमान रहता है । ऐसा नहीं है कि पृथक् पृथक् गायों में पृथक् पृथक् गोत्व सामान्य रहता हो । व्यापक होने के कारण सामान्य निष्क्रिय है । जो व्यापक होता है उसमें क्रिया नहीं होती है । जैसे आकाश में क्रिया नहीं पायी जाती है । सामान्य निरंश होता है । जब सामान्य एक और व्यापक है तो उसमें अंशों की कल्पना नहीं की जा सकती है । ऐसा नैयायिकवैशेषिकों का मत है।
सामान्य के विषय में नैयायिक-वैशेषिकों का उक्त अभिमत सर्वथा निर्दोष नहीं है । उक्त मत में सामान्य का जो स्वरूप बतालाया गया है वह तो ठीक है, किन्तु सामान्य को एक, नित्य और व्यापक मानना युक्तिसंगत नहीं है । सामान्य को सर्वथा नित्य मानने पर उसके द्वारा अर्थक्रिया नहीं हो सकती है । सर्वथा नित्य वस्तु न तो क्रम से अर्थक्रिया कर सकती है और न युगपत् । जो पदार्थ अर्थक्रिया नहीं करता है वह वस्तु नहीं कहला सकता है । क्योंकि अर्थक्रियाकारित्व ही वस्तु का लक्षण है । यदि सामान्य एक और व्यापक है तो विभिन्न गौ व्यक्तियों के अन्तराल में गोत्व सामान्य की उपलब्धि होना चाहिए । किन्तु ऐसा होता नहीं है । जहाँ गाय है वहीं गोत्व की उपलब्धि होती है । गाय रहित प्रदेश में कभी भी गोत्व नहीं पाया जाता है । एक प्रश्न यह भी है कि एक गाय में गोत्व सामान्य पूर्णरूप से रहता है या अशंरूप से । यदि गोत्व एक है और वह एक गाय में पूर्णरूप से रहता है तो दूसरी गायों में गोत्व कैसे रहेगा ? सामान्य को निरंश मानने के कारण ऐसा भी नहीं माना जा सकता है कि विभिन्न गायों में सामान्य अंश रूप से रहता है।