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________________ १५२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन ... का निरुक्ति सिद्ध अर्थ निकलता है । पदार्थसम्बन्धी ज्ञानावरण कर्म और . वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से युक्त आत्मा पद स्फोट कहलाता है । तथा वाक्यार्थसम्बन्धी ज्ञानावरण कर्म और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से युक्त आत्मा वाक्यस्फोट कहलाता है । अतः यह कहा जा सकता है कि जिसमें अर्थ स्फुट ( प्रकट ) होता है वह विशिष्ट शक्ति सम्पन्न चिदात्मा ही स्फोट है । भाव श्रुतज्ञानरूप से परिणत आत्मा को स्फोट मानने में कोई विरोध भी नहीं है। इतना सब होने पर भी यदि स्फोटवादियों का शब्दस्फोट के मानने में प्रबल आग्रह है तो फिर गन्धादि का स्फोट भी मानना चाहिए । जिस प्रकार श्रवण इन्द्रिय के विषयभूत शब्द में अर्थप्रतिपादकत्व न होने से अर्थ की प्रतिपत्ति के लिए स्फोटवादी शब्दस्फोट की कल्पना करते हैं, उसीप्रकार घ्राणेन्द्रिय के विषय गन्ध में, रसना इन्द्रिय के विषय रसमें, चक्षु इन्द्रिय के विषय रूप में और स्पर्शन इन्द्रिय के विषय स्पर्श में उस उस इन्द्रिय के विषयभूत अर्थ की प्रतिपत्ति के लिए क्रमशः गन्धस्फोट, रसस्फोट, रूपस्फोट और स्पर्शस्फोट की कल्पना करना चाहिए । यदि स्फोटवादियों को गन्धादि के स्फोट को स्वीकार करना अभीष्ट नहीं है तो शब्दस्फोट के अभिनिवेश को भी छोड़ देना चाहिए । तथा पद और वाक्य को अर्थ प्रतिपत्ति का कारण मान लेना चाहिए । इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि शब्दस्फोट अर्थ की प्रतिपत्ति का कारण नहीं है, परन्तु पद और वाक्य अर्थप्रतिपत्ति के कारण होते हैं। पद-वाक्यस्वरूप विचार पद और वाक्य से अर्थ की प्रतिपत्ति होती है । इसलिए पद और वाक्य का लक्षण जान लेना आवश्यक है । पद और वाक्य का लक्षण इस प्रकार हैवर्णानां तदपेक्षाणां निरपेक्षः समुदायः पदम् । पदानां तु तदपेक्षाणां निरपेक्षः समुदायों वाक्यमिति । अर्थात् परस्पर में सापेक्ष किन्तु वर्णान्तर से निरपेक्ष ऐसा वर्णों का जो समुदाय है उसको पद कहते हैं । जैसे घट एक पद है । पद और शब्द दोनों पर्यायवाची हैं । घट पद में घ+अ+ट्+अ ये चार वर्ण हैं । ये चारों
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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