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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
या समस्तवर्ण ।‘गौ:' इस पद में गकार, औकार और विसर्ग ये तीन वर्ण हैं । व्यस्त (पृथक् ) वर्णों को वाचक मानने पर एक गकार वर्ण से ही गौ की प्रतिपत्ति हो जायेगी । तब द्वितीय आदि वर्णों का उच्चारण व्यर्थ है । अतः व्यस्त वर्ण वाचक नहीं होते हैं । समस्त वर्णों को वाचक मानना भी ठीक नहीं है । क्योंकि वर्ण तो क्रम से उत्पन्न होते हैं । द्वितीय वर्ण की उत्पत्ति के समय प्रथम वर्ण नष्ट हो जायेगा और तृतीय वर्ण की उत्पत्ति के समय प्रथम और द्वितीय वर्णों की सत्ता नहीं रहेगी । ऐसी स्थिति में वर्णों का समुदाय नहीं बन सकता है । तब समस्त वर्ण अर्थ के वाचक कैसे हो सकते हैं ? ऐसा भी संभव नहीं है कि पूर्व वर्णों की अपेक्षा के बिना ही अन्तिम वर्ण अर्थ का वाचक हो जाय । अतः यह निर्विवाद तथ्य है कि व्यस्त अथवा समस्त वर्ण अर्थ के वाचक नहीं हो सकते हैं । किन्तु गौ आदि शब्दों के द्वारा अर्थ की प्रतीति होती है । यह प्रतीति स्फोट के बिना नहीं हो सकती । इसलिए वर्णों से व्यतिरिक्त और अर्थप्रतीति का हेतु स्फोट नामक तत्त्व अवश्य मानना चाहिए ।
यह स्फोट श्रोत्रविज्ञान में निरंश प्रतिभासित होता है । क्योंकि श्रवणव्यापार के अनन्तर एक स्फोटरूप तत्त्व का अवभास करने वाली संवित्ति का अनुभव हम सबको होता है । यह संवित्ति वर्णविषयक नहीं है । परस्पर में व्यावृत्तरूप वर्ण एक प्रतिभास के जनक नहीं हो सकते हैं । यह स्फोट नित्य है । इसको अनित्य मानने में अनेक दोष आते हैं । यदि स्फोट अनित्य है तो संकेतकाल में गृहीत स्फोट को उसी समय नष्ट हो जाने पर देशान्तर और कालान्तर में गौशब्द के सुनने पर गायरूप अर्थ की प्रतीति नहीं होगी । क्योंकि असंकेतित शब्द से अर्थ की प्रतीति संभव नहीं है । अन्यथा गौ रहित द्वीप से आगत नर को भी गौशब्द के सुनने पर गायरूप अर्थ की प्रतीति हो जाना चाहिए । किन्तु उसे ऐसी प्रतीति नहीं होती है । इस प्रकार स्फोटवादी अपने मत का समर्थन करते हुए स्फोट नामक तत्त्व की सिद्धि करते हैं ।
उत्तरपक्ष
स्फोटवादियों का उक्त मत तर्कसंगत नहीं है । स्फोट नामक तत्त्व का सद्भाव किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । जब दृष्ट कारण शब्द से