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तृतीय परिच्छेद: सूत्र १०१
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वैसे ही अर्थ के अभाव में पाये जाने वाले शब्द भी अर्थ से सम्बद्ध नहीं हैं । और इसीलिए वे अर्थ के वाचक न होकर अन्यापोह के अभिधायक होते हैं । घट शब्द में ऐसी कोई स्वाभाविक शक्ति नहीं है कि वह उस शक्ति के द्वारा कम्बुग्रीवाकार और जलधारण समर्थ घट अर्थ को कह सके । वह तो पुरुष की इच्छानुसार अन्य संकेत की अपेक्षा से पट को भी कह सकता है । अर्थात् यदि कोई व्यक्ति घट शब्द का संकेत पट में कर दे तो घट शब्द पट को भी कह सकता है । अतः शब्द अर्थ के वाचक न होकर अन्यापोह के वाचक होते हैं ।
अन्यापोह का अर्थ है अन्य पदार्थों की व्यावृति या निषेध । गौ शब्द गाय का वाचक नहीं है, किन्तु अगोव्यावृत्ति का वाचक है । गौशब्द को सुनकर गाय का ज्ञान नहीं होता है किन्तु अगोव्यावृत्ति का ज्ञान होता है ।
गाय के अतिरिक्त अन्य जितने पदार्थ हैं वे सब अगौ कहलाते हैं । जब हम गौ शब्द का प्रयोग करते हैं तब उसके द्वारा अन्य सब पदार्थों का निषेध या व्यावृत्ति हो जाती है । जैसे अश्व गौ नहीं है, महिष गौ नहीं है, घट गौ नहीं है, पट गौ नहीं है, इत्यादि प्रकार से गौ शब्द का प्रयोग करने पर गौ से भिन्न अन्य सब पदार्थों की व्यावृत्ति हो जाती है । इसे अगोव्यावृत्ति या अन्यापोह कहते हैं । अतः गौ शब्द गाय का वाचक न होकर अगोव्यावृत्ति अथवा अन्यापोह का वाचक होता है। एक बात और भी है कि शब्द अन्यापोह के वाचक होते हैं तथा वक्ता के अभिप्राय को सूचित करते हैं । धर्मकीर्ति ने इस विषय में प्रमाणवार्तिक में कहा है
नान्तरीयकताऽभावाच्छब्दानां वस्तुभिः सह । नार्थसिद्धिस्ततस्ते हि वक्त्रभिप्रायसूचका: ॥
अर्थात् शब्दों का वस्तुओं के साथ अविनाभाव सम्बन्ध न होने के कारण उनके द्वारा पदार्थों की प्रतिपत्ति नहीं होती है । इसलिए शब्द केवल वक्ता के अभिप्राय को सूचित करते हैं । यही बौद्धों का अन्यापोहवाद है ।
उत्तरपक्ष
बौद्धों का उक्त कथन सर्वथा असंगत है । यदि कुछ शब्द अर्थ के. अभाव में भी पाये जाते हैं तो इतने मात्र से यह नहीं कहा जा सकता है कि शब्द का अर्थ के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । अर्थसहित शब्दों से अर्थरहित