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________________ १३२ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन अतः यहाँ कारण की अनुपलब्धि से कार्य का निषेध किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक कारणानुपलब्धि का उदाहरण है । पूर्वचरानुपलब्धि का उदाहरण न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृत्तिकोदयानुपलब्धेः ॥८३॥ . एक मुहूर्त के अन्त में शकट का उदय नहीं होगा, कृत्तिका के उदय की अनुपलब्धि होने से । यहाँ शकट का उदय प्रतिषेध्य है । शकट के उदय का पूर्वचर है कृत्तिका का उदय । जब अभी कृत्तिका का उदय नहीं है तो एक मुहूर्त बाद शकट का उदय कैसे होगा ? अतः यहाँ पूर्वचर की अनुपलब्धि से उत्तरचर शकट के उदय का प्रतिषेध किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक पूर्वचरानुपलब्धि का उदाहरण है। __उत्तरचरानुपलब्धि का उदाहरण नोदगाद्भरणिर्मुहूर्तात् प्राक् तत एव॥८४॥ एक मुहूर्त पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है, कृत्तिका के उदय की अनुपलब्धि होने से । यहाँ भरणी का उदय प्रतिषेध्य है और उसका उत्तरचर है कृत्तिका का उदय । यदि इस समय कृत्तिका का उदय होता तो यह कहा जा सकता था कि पहले भरणी का उदय हो चुका है । अत: यहाँ उत्तरचर की अनुपलब्धि से पूर्वचर भरणी के उदय का निषेध किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक उत्तरचरानुपलब्धि का उदाहरण है. । ___ सहचरानुपलब्धि का उदाहरण नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः ॥८५॥ इस समतुला ( समान पलड़ों वाली तराजू ) में उन्नाम ( एक पलड़े का ऊँचा होना ) नहीं है, नाम ( एक पलड़े का नीचा होना ) की अनुपलब्धि होने से । यहाँ उन्नाम प्रतिषेध्य है और उसका सहचर है नाम । जब तराजू के एक पलड़े में नाम नहीं है तो दूसरे पलड़े में उन्नाम नहीं हो सकता है । नाम और उन्नाम दोनों सहचर हैं । अतः यहाँ सहचर नाम की अनुपलब्धि से तराजू में उन्नाम का निषेध किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक सहचरानुपलब्धि का उदाहरण है।
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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