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तृतीय परिच्छेद : सूत्र ७६-८२
१३१ घट की उपलब्धि होने के हैं । यदि यहाँ घट होता तो भूतल की तरह घट की भी उपलब्धि अवश्य होती । अतः यहाँ घट के स्वभाव ( दृश्यत्व ) की अनुपलब्धि होने से घट का निषेध किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक स्वभावानुलब्धि का उदाहरण है । जिस प्रकार भूतल में घट का निषेध किया जाता है उस प्रकार पिशाच का निषेध नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह उपलब्धिलक्षणप्राप्त नहीं है, किन्तु अनुपलब्धिलक्षणप्राप्त ( अदृश्य ) है ।
. व्यापकानुपलब्धि का उदाहरण
नास्त्यत्र शिंशपा वृक्षानुपलब्धेः ॥८०॥ यहाँ शिंशपा ( शीशम का वृक्ष ) नहीं है, वृक्ष की अनुपलब्धि होने से । यहाँ शिंशपा प्रतिषेध्य है । और उसका व्यापक है वृक्ष । शिशपा व्याप्य है और वृक्ष व्यापक है । जब यहाँ व्यापक ही नहीं है तब व्याप्य कहाँ से होगा ? इस प्रकार यहाँ व्यापक वृक्ष की अनुपलब्धि से व्याप्य शिंशपा का निषेधं किया गया है । यह प्रतिषेधसाधक व्यापकानुपलब्धि का उदाहरण है । -
कार्यानुपलब्धि का उदाहरण नास्त्यत्राप्रतिबद्धसामोऽनिधूमानुपलब्धेः ॥८१॥ ___यहाँ अप्रतिबद्ध सामर्थ्ययुक्त अग्नि नहीं है, धूम की अनुपलब्धि होने से । यहाँ अप्रतिबद्ध सामर्थ्ययुक्त अग्नि प्रतिषेध्य है । और अग्नि का कार्य है धूम ।अत: यहां धूम की अनुपलब्धि से अग्नि का निषेध किया गया है । यदि यहाँ अप्रतिबद्धसामर्थ्य युक्त अग्नि होती तो वह धूम को अवश्य उत्पन्न करती । इसका तात्पर्य यह है कि यहाँ ऐसी अग्नि तो हो सकती है जिसकी सामर्थ्य मन्त्रादि के द्वारा प्रतिबद्ध की गई हो, किन्तु अप्रतिबद्धसामर्थ्य युक्त अग्नि यहाँ नहीं है । यह प्रतिषेधसाधक कार्यानुपलब्धि का उदाहरण है ।
कारणानुपलब्धि का उदाहरण
नास्त्यत्र धूमोऽननेः ॥८२॥ ...यहाँ धूम नहीं है, अग्नि के न होने से । यहाँ धूम प्रतिषेध्य है । और
उसका कारण है अग्नि । जब यहाँ अग्नि नहीं है तो धूम कहाँ से होगा ?