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________________ . १२८ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन . कृत्तिका नक्षत्र का उदय शकट नक्षत्र के उदय का पूर्वचर है । शकट नाम रोहिणी नक्षत्र का है । एक मुहूर्त बाद शकट नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि इस समय कृत्तिका नक्षत्र का उदय है । यहाँ कृत्तिका नक्षत्र के उदय को देखकर भविष्य में होने वाले शकट नक्षत्र के उदय का अनुमान किया गया है । यह विधिसाधक अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धि का उदाहरण है। . - उत्तरचर हेतु का उदाहरण उदगाद् भरणिः प्राक् तत एव ॥६९॥ एक मुहूर्त पहले भरणी नक्षत्र का उदय हो चुका है, क्योंकि इस समय कृत्तिका का उदय है । कृत्तिका का उदय भरणी नक्षत्र का उत्तरचर है । अतः यहाँ कृत्तिका के उदय को देखकर यह अनुमान किया गया है कि भरणी नक्षत्र का पहले उदय हो चुका है । यह विधिसाधक अविरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि का उदाहरण है। . सहचर हेतु का उदाहरण अस्त्यत्र मातुलिङ्गे रूपं रसात् ॥७०॥ इस मानुलिङ्ग ( पपीता ) में रूप है, रस होने से । रूप और रस सहचारी हैं । कोई व्यक्ति रात्रि के अन्धेरे में फल के रस को चखकर उसके रूप का अनुमान करता है कि इसमें रूप अवश्य है । यह विधिसाधक अविरुद्ध सहचरोपलब्धि का उदाहरण है । प्रतिषेधसाधक विरुद्धोपलब्धि के भेद विरुद्धतदुपलब्धिः प्रतिषेधे तथेति ॥७१॥ प्रतिषेधसाधक विरुद्धोपलब्धि के अविरुद्धोपलब्धि की तरह छह भेद हैं जो इस प्रकार हैं-विरुद्धव्याप्योपलब्धि, विरुद्धकार्योपलब्धि, विरुद्धकारणोपलब्धि, विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि, विरुद्धउत्तरचरोपलब्धि और विरुद्ध सहचरोपलब्धि । यहाँ प्रतिषेध्य से विरुद्ध के व्याप्य आदि की उपलब्धि पायी जाती है। विरुद्धव्याप्य हेतु का उदाहरण .. नास्त्यत्र शीतस्पर्श औष्ण्यात् ॥७२॥
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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