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________________ तृतीय परिच्छेद : सूत्र ४४-५१ १२१ दृष्टान्त दो प्रकार का है-अन्वयदृष्टान्त और व्यतिरेक दृष्टान्त । अन्वयदृष्टान्त का स्वरूपसाध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः ॥४८॥ साध्य से व्याप्त साधन जहाँ प्रदर्शित किया जाता है वह अन्वयदृष्टान्त कहलाता है । जैसे अग्नि और धूम की व्याप्ति बतलाने में महानस अन्वयदृष्टान्त है । अन्वयदृष्टान्त का आकार इस प्रकार होता है-जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है, जैसे महानस । व्यतिरेकदृष्टान्त का स्वरूपसाध्याभावे साधनव्यतिरेको यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ॥४९॥ साध्य के अभाव में जहाँ साधन का अभाव बतलाया जाता है वह व्यतिरेक दृष्टान्त कहलाता है । व्यतिरेकदृष्टान्त का आकार इस प्रकार होता है-जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम भी नहीं होता है, जैसे महाह्रद । - यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि दृष्टान्त और उदाहरण में क्या भेद है । किसी स्थान या वस्तु का नाम दृष्टान्त है । जैसे महानस और महाह्रद दृष्टान्त हैं । किन्तु दृष्टान्त को बतलाने के लिए जो वचन बोला जाता है वह उदाहरण कहलाता है । जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है, जैसे महानस । इस प्रकार का वाक्य प्रयोग उदाहरण कहलाता है । दृष्टान्त वाच्य है और उदाहरण वाचक है । उपनय का स्वरूप हेतोरुपसंहार उपनयः ॥५०॥ ...पक्ष में हेतु के उपसंहार ( दुहराना ) करने को उपनय कहते हैं । जैसे इस पर्वत में धूम है, ऐसा कहना उपनय है ।अग्नि के अनुमानकाल में हेतु का प्रयोग करते समय यह बतला दिया जाता है कि पर्वत धूमवान् है । उपनय में उसी बात को फिर दुहराया जाता है । निगमन का स्वरूप प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ॥५१॥ प्रतिज्ञा के उपसंहार को निगमन कहते हैं । जैसे यह पर्वत अग्निमान्
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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